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________________ ( १३२ ) ४. काल -शाज्ञा मांहिके बाहिर दोनं नहीं कि 11p न्याय अजीव है । ५ पुद्गल आज्ञा मांहिके बाहिर दोन नहीं किणन्याय जीव है 1 ६ नौव आज्ञा मांहिके बाहिर दोनं है कि न्याय निर्वद्य करणी आज्ञा मांहि है सावा करणी 'आता बाहर के इणन्याय | 1 A ॥छव द्रव्यपर लड़ी दशमी चोर साहूकारकी । १ धर्मास्ति काय चोर के साहूकार दोन नह किणन्याय चोर साहूकार तो जीव है एधर्माि 'काय अनीव है इगन्याय । २. अधर्मास्ति काय चोरके साहूकार दोन नहीं ११. अजीव के । आकाशास्ति काय चोरके साहूकार दोन नही नीव है । 1 धाराओ ४ काल चोरके साहूकार दोन नहीं अजीव ५ पुद्गल चोर के साहूकार दोनू' नहीं अजीव छे नौव चोरके साहूकार, दोन है किणन्याय माठा परिणाम आसरौ चोर छै चोखा परिणा SME द +
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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