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________________ ( १३३ ) ॥ व द्रव्यपर लडी इग्यारमी जीव अजीवको । १ धर्मास्ति काय जीवके अजीव, अजीव छ । २ अधर्मास्ति काय जोवक अजीव, अजीव छै। - ३ आकाशास्ति काय जीवके अजीव, अजीव छ । ४ काल जीवके अनीव, अजीव छ। ५ पुद्गलास्ति काय जीवके अजीव, अजीव, छै । ६ जौवास्ति काय जीवके अजीव, जीव छै। . ॥ व द्रव्यपर लड़ी बारमी एक अनेक की ॥ १ धर्मास्ति काय एक छै के अनेक, छै एक छ, किणन्याय, द्रव्यथको एकही द्रव्य छै। २ अधर्मास्ति काय एक छै के अनेक के एक है, द्रव्यथकी एकही द्रव्य छ। ३ आकाशास्ति काय एकके अनेक, एक छ, लोक अलोक प्रमाणे एकही द्रव्य छै। ४ काल एक छै के अनेक है, अनेक छै द्रव्यथको अनन्ता द्रव्य छै इणन्याय । ५ पुगल एक छके अनेक है, अनेक है, द्रव्य थकी अनन्ता द्रव्य छै इणन्याय । '६ जीव एक छै के अनेक छ, अनेक छै द्रव्यथकी अनन्त द्रव्य के इणन्याय ।
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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