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________________ ( १३१ ) ॥ व द्रव्यपरलड़ी आठमी सावद्य निवद्यकी ॥ १ धर्मास्ति काय सावाके निर्वद्य, दोन नहीं ___ अजीव छ। २. अधर्मास्ति काय सावद्यके निवद्य, दोनूं नहीं , अजीव छै। . ३ आकाशास्ति कार्य सावाको निर्वद्य दोन नहीं अजीव छै। ४ काल सावद्यक निर्वा, दोनं नहीं अजीव छ। .५ पुद्गलास्ति काय सावद्यकै निर्वदा, दोन नहीं .. अजीव छै। ६ जौवास्तिकाय सावद्यक निर्वा, दोनँ छै खोटा , - परिणामा सावा के चीखा परिणामा निर्वद्य है। ॥वद्रव्यपर लडो नवमी आज्ञामांहिबाहेरको॥ । १ धर्मास्ति काय आज्ञा मांहिके बाहर दोनूँ नहीं ते कि न्याय आज्ञा सांहि बाहर तो जीब है। अने ए अजीव छै। - : २ अधर्मास्ति काय आज्ञा माहिक बाहिर दो। ... नहीं किणन्याय अजीव छै। : ३ आकाशास्ति काय आज्ञा मांहिक बाहिर दोनं नही किणन्याय अजीव के। ..
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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