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________________ ( १३० .) जोग छ, ते किणन्याय शुभ अशुभ कर्म नो बन्ध छांडवा जोगही छै। - ६ मोच छांडवा जोगके आदरवा जोग आदरवा जोग ते किणन्याय सकल मर्म खपावे जीव , निरमल थाय सिद्ध हुवे दूणच्याय - आदरवा जोग के . ॥ षटद्रव्यपरलड़ी सालमी रूपी अरूपी की ॥ १ धर्मास्ति काय रूपोक अरूपी, अरूपी किंणन्याय पांच वर्गा नहीं पाव दून्याय । २ अधर्मास्ति काय रूपीक अरूपी, अरूपी किणन्याय पांच वर्ण नहीं पावे इशान्याय । . ३ आकाशास्तिकाय रूपोके अरूपी, अरूपी किणा· न्याय पांच बर्ण नहीं प्रावे गन्याय ।। ४ काल रूपौक अरूपी, अरूपी, किणन्याय पांच __ वर्ण नहीं पावै गन्याय । ५ पुद्गल रूपौके यरूपी, रुपौ किगन्याय पांच ... वर्ण पावे हान्योय । ६ जीव रूपीके अरूपी अरूपी किणन्याय पांच वर्ण . . नहीं पावे इणन्याय । ...
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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