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________________ (. १०४ ) चालियो हे दर्शण केवल नाण ॥ ८॥ बारै नरवर एक वृषभ, वृषभ दश हयवर । दश हयवर एक मेष, मेष पांच से गज गयवर । पांच से गजहर एक सिंह, सिंह दोय सहंस अष्टापद । वीस लाख अष्टापद एक बासुदेव, दोय बासुदेव एक चक्र हद । कोड़ चक्रिया एक सुर गण्यो हे कोड़ सुरां एक इन्द। इन्द अनन्ता सेना नमः चिंटी भागुली अग्र जिणंद ॥ ६ ॥ आप तणाजी प्रभु गुण अनन्ता कोई पार न पावे। लब्ध प्रभाव कोड़ कायो कर शीश बनावे। श्री श्री कोड़ा कोड़ बदन गुण करे श्रावक ना कोड़ी कोड़ा सागर लगे हे, करज्ञान गुण सार। भाप तणा जी प्रभु गुण अनन्ता मोसे कहतां न आवे पार ॥ १० ॥ चवदे राज लोक बले बालनी कणिया। सर्व जीवनौ रोम राय, नहीं जाये गिणिया। एक एक बालुड़ी अनंत अनंत गुण करे अनंता । पूज्य प्रसाद वाहै लालचंद नहीं पावे अंता । सम्बत अठार बासठे हे मास मृगसिर अरी छन्द। . रामपुरे गुण गाविया । धन्य २ वौर जिणन्द ॥ ११ ॥ ॥ढाल उपदेशिक ॥ - मति ताक ई नार बिरामी ॥ ए आंकड़ी ॥ परनारी हे काली नागण के विष वेल समाणी । तेज SIMA
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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