SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०३ ) __ भिक्षु नौ पडिमां अष्ट भक्ता नौ हादश कौनौ । दोयसे ने गुण तोस छठ तप गिणती लौनी। इग्यारे वर्ष छ मास पचौस दिन तपस्या करा इग्यारे मास उगपिस दिवस हे पारणा अलेरा । इविध प्रभुजी तप कियो हे, पछै उपन्यो केवल नाणा। तीस वर्ष जणा विचरिया, ते पणामुं वईमान ॥.५ ॥ प्रथम अष्ट दूजो प्रष्ट दोय चंपा-भगिये। चतुर्दश नालंदे पाहड छः मथ ग भगिये । भद्दलपुरना सब मिल अड़तीसज गिणिये। एक आलम्बो एक सावथौ हे एक अनार्यज जाण । चर्म चौमासो पावापुरी, त्यां पहुंता निरबाग ॥ ६ ॥ ज्यारे मुनिवर चवदे सहस्व सहस छतौसे आजिंका। एक लक्ष गुणसठ सहंस श्रावक तीन लाख श्राविका। अधिक अठारा सहंस इग्यारे गण धरनी माला । गौतम खामी बड़ा शिष्य सती चन्दन बाला। ज्यारे केवल ज्ञानी सात सा हे प्रभु पहता निरबाण । शासण बरते खाम नो, इकवीस सहस वर्ष परमाय ॥ ७ ॥ पुरब तीन से जाय, तेरेसे अवधिज. ज्ञानी। मनपर्यव ज्ञानी पांच सात से केवल ज्ञानी। वैके लब्ध ना धार सात से मुनिवर कहिये। वादी चारसे जाण, के चरचा भिन्न २ लहिये । एका एक संजम लियो हे, प्रभु एका एक निरवाण। चोष्ट वर्ष लग
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy