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________________ ( १०५ ) गुणवन्त ने बालग्र छायो ॥ मति० हेरौ ए नर्क तगौ निसाणी ॥ मति० ॥ १ ॥ रावन राय त्रिखण्ड नो साहिब, सोता हरि घर आगी । राम चढ्या दाल बा - दल लेकर माग्यो हे सारंग माणौ । कथा आगम मांह भाणौ ॥ मति० ॥ २ ॥ पद्मोतर निज लाज गमाई, किचक नौंच कहाणी । मनोरथ मुओ मैगरह्या बश, अपजशनौ अहनायौ । जग मांहे प्रगट कहाणी ॥ मति• ॥ ३ ॥ गौ ब्राह्मण ने बाल हत्या, ऋष नार हत्या बले जाणौ । तेह थौ पाप अधिक पिण लागे, भाख्यो केवल नाणो । अनन्त दुःखारौ खाणौ ॥ मति० ॥ ४ ॥ रत्न यत्न कर शौयल आराधो, छोडौ ने कुमति प्राणौ । मुक्त महेल नौं सहल अचल सुख, मुक्त रमण निसरायौ । कहु वौर जिणंद बाणी ॥ मति० ॥ ५ ॥ साल छिया सिय महा मन्दिर में, शौल कथा सुबखायो । शौल विनां सह जन्म अख्यारथ, क्या राजा क्या राणौ । भौल जश उत्तम प्राणो ॥ मति० ॥ ६ ॥ 1 7 १४
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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