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निवर्तक धर्म मे मूलत कोई विरोध नही है यह भी लेखक ने स्पष्ट रूप मे दिखाया है । समाज एव व्यक्ति के कल्याण व उत्थान के लिये दोनो ही प्रकार के धर्म आवश्यक है। इन दोनो मार्गों के विषय में जैन, बौद्ध और गीता के दृष्टिकोण मे जो अन्तर है उसका भी विद्वान् लेखक ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है ।
प्रस्तुत पुस्तक स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र के विद्यार्थियो, शोध छात्रो तथा अन्य समस्त विद्वानो और जिज्ञासुओ के लिये उपयोगी सिद्ध होगी जो भारताय दर्शन नथा साधना के गम्भीर तथा तुलनात्मक अध्ययन मे रुचि रखत है । इस प्रकार के उच्चस्तरीय तथा प्रामाणिक ग्रन्थ का प्रणयन कर डाक्टर मागरमल जैन ने माधना मार्ग पर उपलब्ध साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। इसके लिये महृदय तथा विचारशील दार्शनिक समाज उनका आभारी होगा।
म. रामशंकर मिश्र प्रोफेसर एव अध्यक्ष दर्शनविभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
वाराणमी,