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________________ प्राक्कथन भारतीय दर्शन का जीवन मे घनिष्ठ सम्बन्ध है। इसमे विभिन्न दार्शनिक तत्त्वों के प्रतिपादन के माथ ही मानव जीवन के परम लक्ष्य एवं उसकी प्राप्ति के उपाय के मम्बन्ध में गम्भीर तथा व्यापक विचार हुआ है। विभिन्न दार्शनिक मम्प्रदायों तथा परम्पगी ने अपनी-अपनी दृष्टि से विशिष्ट माधना मार्गों की स्थापना की है। प्रस्तुत पम्नक में जैन दर्शन के ख्यातिलब्ध विद्वान् तथा पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध-संस्थान के निर्देशक डाक्टर मागरमल जैन ने जैन, बौद्ध और गीता के माधना मार्ग का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। यह अध्ययन विद्वत्तापूर्ण, गम्भीर एवं विचारोत्पादक है । इमी के माथ ही अन्यन्त गरल और सुबोध है । इमकी मबमे मुख्य विशेषता हमारी दृष्टि में यह है कि विद्वान लेखक ने उपगक्त माघना मार्गों के प्रतिपादन तथा मूल्यांकन में स्वय को किगी प्रकार के पूर्वाग्रह, पक्षपात तथा संकुचित दृष्टिकोण में पूर्णरूप में मुक्त रखा है। जैन दर्शन तथा परम्परा मे गम्भीर आस्था रखते हए. लेखक ने बौद्ध और भगवद्गीता के माधना मार्गों के प्रतिपादन में पूरी उदारता तथा निष्पक्ष दृष्टिकोण का परिचय दिया है। सुलनात्मक अध्ययन की इसी विधि को आधुनिक विद्वन् समाज न मर्वश्रेष्ठ स्वीकार किया है । तुलनात्मक अध्ययन के क्षेत्र में इस दृष्टि में लेखक का यह प्रयाम अत्यन्त स्तुत्य तथा अनुकरणीय है । भारतीय धर्म त पा मम्कृति अनेकता में एकता के मार्वभौम सिद्धान्त पर प्रतिष्ठित है। साधना मार्ग भी इसी गत्य का उद्घाटन करता है। प्रस्तुत ग्रन्थ मे यह स्पष्ट रूप से दिग्वाया गया है कि जैन, बौद्ध और गीता के साधना मार्ग स्वतन्त्र और भिन्न होते हुए भी मूलत एक है । ममन्व का प्राप्ति भारतीय नैतिक साधना अथवा योग का मुख्य लक्ष्य ह । राग-द्वेष आदि समस्त मानसिक विकारो तथा अन्तर्द्वद्वों में मुक्त होने पर ही मनुष्य को ममत्व की प्राप्ति होती है, उसे अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होता है, यह भारतीय दर्शन की मान्यता है और चेतना के इसी उच्चतम धरातल को प्राप्त करन के लिये मुख्य म्प में विभिन्न साधना मार्गों अथवा योगों का प्रतिपादन किया गया है । मनष्य अपनी चेतना में आमूल परिवर्तन करने तथा देश और काल की सीमा से मुक्त चेतना के अविचल और अनन्त स्वरूप को प्राप्त करने मे मर्थ है, यह भारतीय आध्यात्मिक दर्शन का उद्घोप है । निवर्तक धर्म के अनुसरण से ही मनुष्य को समत्व की तथा मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है। सम्यक् ज्ञान तथा सदाचरण से सम्पन्न व्यक्ति हो महान् निवर्तक धर्म मार्ग पर चलने में सक्षम होता है। इन सब मौलिक तथ्यों का लेखक ने पाण्डित्यपूर्ण विश्लेषण तथा प्रतिपादन किया है। प्रवर्तक धर्म तथा
SR No.010202
Book TitleJain Bauddh aur Gita ka Sadhna Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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