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________________ प्राचार्य दरितावली नोजीव-नोअजीव ऐसे तीन तत्त्व मानने चाहिये। जैसे छिपकली की पूंछ कटने पर भी वह हिलती रहती है और तेज वटी हुई यह रस्सी भूमि पर घूम रही है। पर इसको जीव या अजीव नही कह सकते क्योकि इसमे क्रिया है।" पोट्टशाल इसका उत्तर नहीं दे सका, अतः उसकी हार हो गईः ॥१०८॥ -, . , दोहा॥ -- .' रोहगुप्त की विजय श्रवण कर, गुरुवर ने आदेश दिया। - राज सभा में सत्य बता कर, भ्रान्ति दूर कर दो भाया ॥२०॥ अर्थः-रोहगुप्त ने जव गुरु से आकर जीतने की वात कहीं, तब गुरु वोले--"गुप्त ! तीसरी राशि कायम कर के तूने ठीक नहीं किया। यह शास्त्र विरुद्ध है । अतः राज सभा मे जाकर इसे स्पष्ट कर - दो, ताकि लोग भ्रान्ति मे नही पड़े" ॥२०॥ ,, 12j , लावारगा। . . ., रोहगुप्त ने गुरु प्राज्ञा नही मानी, .. राजा को गुरु ने कह दी सब छानी। , : राजसभा मे निग्रह करना ठाना, चला वाद षण्मास न तत्त्व पिछाना। गुरु चरणों मे विनय करी सुखकारी लेिकर०॥१०॥ अर्थ -जव रोहगुप्त ने समझाने पर भी गुरु आज्ञा स्वीकार नही की तव प्राचार्य ने राजा को सारी सही स्थिति से अवगत कराया और राजसभा मे शिष्य से शस्त्रार्थ कर सत्यासत्य का निर्णय करना निश्चित गया। , . - गुरु शिष्य के बीच छः मास तक राज्य सभा मे वाद-विवाद चलता रहीं। भिन्न-भिन्न प्रकार से समझाने पर भी शिष्य ने अपना हठ नही छोड़ा, तब राजा ने विनयपूर्वक गुरु से प्रार्थना कि-"भगवन् निर्णय-शीघ्र हों तो अच्छा है" ॥१६॥
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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