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________________ प्राचार्य चरितावली ॥ लानरगी ।। राज कार्य मे विघ्न देख गुरु बोले, कल ही निग्रह करू सत्य जग तोले । प्रात सभा में कहा हाट में देखो, मिलान तीजा द्रव्य परखलो लेखो। शत पर चवालीस प्रश्न किये भारी लेकर०॥११०॥ अर्थ:-गुरु ने भी जव परिणाम शीघ्र निकलता नही देखा, तब सोचा कि राजकार्य मे व्यर्थ ही इस चर्चा के लम्वी होते जाने के कारण वाधा हो रही है। अतः शास्त्रार्थ को आगे न बढ़ा कर कल ही समाप्त कर देना चाहिये । जनता को मालूम हो जाय कि सत्य क्या है। प्रातःकाल चर्चा चलते ही उन्होने कहा-"कुत्रिका पण जो एक दैवी हाट है, उसमे ससार भर की चीजे मिलती है, वहा से नोजीव, नो अजीव मंगाया जाय।" , पर खोजने पर भी जीव और अजोव के अतिरिक्त तीसरी वस्तु वहां नही मिली । अतः निश्चय हुआ कि ससार में दो ही तत्त्व-पदार्थ है, तीसरा नहीं । गुरु शिप्य के वीच १४४ प्रश्न और उत्तर हुए । अन्त मे गुरु की विजय हुई और शिष्य पराजित हो गया ॥११०॥ लावरणी॥ दर्शन मोह के उदयगुप्त ने धारा, षट् पदार्थ का मन में जमा विचारा। भूप साक्षि गुरु ने निग्रह कर डाला, गुरु विरोध से दिया स्वदेश निकाला। वैशेषिक मत किया जगत में जहारी ॥लेकर०॥१११॥ अर्थः-गुरु ने राजसभा मे रोहगुप्त को युक्तिपूर्वक निरुत्तर किया फिर भी मिथ्यात्वमोह के उदय से उसने सत्य स्वीकार नहीं किया। उल्टे पट् पदार्य का सिद्धान्त लेकर मिश्या मत का प्रचार करने लगा। तव गुरु प्राज्ञा को अवज्ञा करते देखकर राजा ने उसे देश-बाहर कर दिया ।रोहगुप्त
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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