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________________ आचार्य चरितावली १०. पूज्य श्री मोतीलालजी महाराज ११. , श्री रूपचन्दजी " उपशाखाए चौथे पूज्य श्री टोडरमलजी महाराज के द्वितीय गिप्य इन्द्र मलजी के बाद दूसरे पाट से दो प्रतिशाखाए निकली, जिनमें महान तपस्वी श्रीभानमलजी और वुधमलजी महाराज हुए । वुधमलजी महाराज के जिप्य मरुधर केसरी मिश्रीलालजी महाराज विद्यमान है। पूज्य श्री भैरू दासजी महाराज के समय श्री चौथमलजी महाराज अलग हुए और इनसे पूज्य चौथमलजी महाराज की पृथक् शाखा कहो जाने लगी । इस परम्परा के सम्बन्ध में आगे बताया जा रहा है। (२) पूज्य श्री जैतसोजी महाराज की दूसरी परम्परा इस परम्परा मे श्री उम्मेदमलजी महाराज, श्री सुलतानमलजी महाराज, तपस्वी श्री चतुर्भुजजी महाराज हुए। आगे साधु परम्परा नही रही। पूज्य श्री जयमल्लजी महाराज की समुदाय को प्राचार्य परम्परा १. पूज्य श्री जयमलजी महाराज २ , रायचन्द्रजी। , आसकरणजी , ४. , सवलदासजी , ५. , हीराचन्द्रजी , ६. , कस्तूरचन्द्रजी , ७ , भीकमजी , कानमलजी , पूज्य श्री कानमलजी महाराज के बाद वर्षों तक आचार्य पद रिक्त रहा। उस समय श्री जोरावरमलजी महाराज के शिष्य श्री हजारीमलजी 9
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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