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________________ परिशिष्ट १५७ महाराज और श्री नथमल्लजी महाराज के श्री चौथमलजी महाराज तथा श्री मगनमल जी स्वामी के श्री रावतमलजी महाराज, इन तीनो की व्यवस्था में संघ चलता रहा। मध्यकाल में श्री हजारीमलजी महाराज के प्रिय शिष्य पं० श्री मिश्री मलजी 'मधुकर' महाराज का आचार्य पद पर पदासीन किया गया। आपका नाम पूज्य श्री जसवन्तमलजी महाराज रखा गया, पर बाद मे पुन. प्रवर्तक पद की परम्परा चालू होने पर वि० स० २००६ मे सादडी के अखिल भारतीय स्थानकवासी मुनियो के वृहद सम्मेलन में जव अखिल भारतीय संगठन के लिए आह्वान हुआ तो इस समुदाय ने श्रमण सघ मे अपना विलय करके एकता के लिए प्रापने आचार्य पद का त्याग करके एक महान् त्याग का आदर्ग प्रस्तुत किया । अभी स्थविर श्री रावतमलजी महाराज, श्री ब्रजलालजी महाराज व श्री जोतमलजी महाराज आदि संत विद्यमान है। (३) पूज्य श्री कुशलजी महाराज को समुदाय और आचार्य श्री रत्नचंदजी महाराज की आचार्य परम्परा , १ पूज्यपाद श्री कुशलजी महाराज . २ पूज्य श्री गुमानचन्द्रजी महाराज ३. ., दुर्गादासजी , ४. पूज्य आचार्य श्री रत्नचन्द्रजी महाराज (आपके द्वारा क्रिया उद्धार करने के कारण सवत् १८५४ मे आपके नाम से समुदाय चलने लगा ) ५ पूज्य श्री हमीरमलजी महाराज , कजोड़ीमलजी , , विनयचन्दजी , , शोभाचन्दजी - -, ६. , हस्तीमलजी महाराज जो वर्तमान में विद्यमान है । (४) पूज्य श्री चौथमलजी महाराज की परम्परा ' १. पूज्य श्री रघुनाथजी महाराज. - 9
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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