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________________ ८ : जैन आचार समान स्थान दिया गया है। उदाहरण के लिए मीमांसा-परम्परा का एक पक्ष पूर्वमीमांसा आचारप्रधान है जबकि दूसरा पक्ष उत्तरमीमांसा ( वेदान्त ) विचारप्रधान है। सांख्य और योग क्रमशः विचार और आचार का प्रतिपादन करनेवाले एक ही परम्परा के दो अग हैं । बौद्ध-परम्परा मे हीनयान और महायान के रूप मे आचार और विचार की दो धाराएं है। हीनयान आचारप्रधान है तथा महायान विचारप्रधान । जैन-परम्परा मे भी आचार और विचार को समान स्थान दिया गया है । अहिंसामूलक आचार एव अनेकांतमूलक विचार का प्रतिपादन जैन विचारधारा की विशेषता है। वैदिक दृष्टि : भारतीय साहित्य मे आचार के अनेक रूप उपलब्ध होते हैं। वैदिक सहिताओ मे लोकजीवन का जो प्रतिविम्ब मिलता है उससे प्रकट होता है कि लोगो मे प्रकृति के कार्यों के प्रति विचित्र जिज्ञासा थी। उनकी धारणा थी कि प्रकृति के विविध कार्य देवो के विविध रूप थे, विविध देव प्रकृति के विविध कार्यों के रूप मे अभिव्यक्त होते थे। ये देव अपनी प्रसन्नता अथवा अप्रसन्नता के आधार पर उनका हित-अहित कर सकते थे इसलिए लोग उन्हे प्रसन्न रखने अथवा करने के लिए उनकी स्तुति करते, उनकी यशोगाथा गाते । स्तुति करने की प्रक्रिया अथवा पद्धति का धीरे-धीरे विकास हुआ एवं इस मान्यता ने जन्म लिया कि अमुक ढग से अमुक प्रकार के उच्चारणपूर्वक की जानेवाली स्तुति ही
SR No.010197
Book TitleJain Achar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1966
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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