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________________ [ ७० ] संक्षेप में कहा जाय तो जैनशास्त्रों की ऐसी मान्यता है कि किसी भी देश, किसी भी वेश, किसी भी जाति, किसी भी धर्म, किसी भी संप्रदाय, किसी भी कुल मे अथवा- चाहे कहीं भी रहा हुआ या जन्म प्राप्त किया हुआ मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है, हां, इतनी बात अवश्य है कि मोक्ष प्राप्त करने वाले व्यक्ति में सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र अवश्य उत्पन्न होना चाहिये। दूसरे शब्दों में कहें तो जिसको समभाव (समस्त जीवों पर समानभाव ) अपनी आत्मा के समान देखने की दृष्टि हो अथवा सुख-दुःख, अच्छाबुरा, प्रिय-अप्रिय सव को एक ही भाव से देखने की दृष्टि प्राप्त हो जावे, ऐसा कोई भी मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है। इस बात को जैनशास्त्रकार इन शब्दों मे कहते हैं: सेयवरो अ आसंवरो व बुद्धो वा अहव अन्नो वा । समभावभाविअप्पा लहेइ मुक्खं न संदेहो । श्वेताम्बर हो या दिगम्बर, बुद्ध हो या अन्य जिसका आत्मा समभाव से भावित है वह अवश्य मोक्ष प्राप्त करेगा, इसमे संदेह नहीं है। __ सजनो! अब मैं अपना निवन्ध पूर्ण करते हुए मात्र इतना ही कहूँगा कि जैनदर्शन मे ऐसे अभेद्य, अकाट्य और अगम्य तत्त्वों का प्रतिपादन किया गया है जिनका वर्णन मेरे जैसा अल्पन और फिर इतने छोटे लेख मे नहीं कर
SR No.010196
Book TitleJagat aur Jain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri, Hiralal Duggad
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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