SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ६८ ] केवलनानी आयुष्य पूर्ण करते समय बाकी के चार अधाति (नाम, आयुष्य, गोत्र और वेदनीय) कर्मों का क्षय करता है, और बाद मे आत्मा शरीर से अलग हो (छूट ) कर उर्ध्वगति करता है। एक ही समय मे वह लोक के अग्रभाग पर पहुंच जाता है और वही अवस्थित हो जाता है। यह मुक्ति मे-मोक्ष मे-गया हुआ जीव कहलाता है। सजनो! मोक्ष-मुक्ति-निर्वाण इत्यादि पर्यायवाची शब्द । इस मोक्ष को तमाम अस्तिक दर्शनकारों ने स्वीकार किया है। मात्र इतना ही नहीं परन्तु प्रत्येक दर्शनकार ने 'मोक्ष' का जो लक्षण बतलाया है, वह प्रकारान्तर से एक जैसा ही है देखें :नैयायिक कहते हैं :--- स्वसमानाधिकरणदुःखप्रागभावासहवृत्तिदुःखध्वंसो हि मोक्षः। त्रिदण्डि विशेष कहते हैं--- परमानन्दमयपरमात्मनि जीवात्मलयो हि मोक्षः । वेदान्तिक कहते हैं--- अविद्यानिवृत्ती केवलस्य सुखज्ञानात्मकात्मनोऽवस्थानं मोक्षः। सांख्य कहते हैं--- पुरुपस्य स्वरूपेणावस्थानं माक्षः ।
SR No.010196
Book TitleJagat aur Jain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri, Hiralal Duggad
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy