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________________ [ ५८ ] इस प्रकार स्याद्वाद सम्बन्धी संक्षेप मे विवेचन करने के बाद अब मैं जैनदर्शन मे माने हुए छः द्रव्यों सम्बन्धी संक्षेप । मे विवेचन करूँगा। छः द्रव्य जैनदर्शन मे छः द्रव्य माने गये हैं, जिनके नाम ये हैं :१ धर्मास्तिकाय, २ अधर्मास्तिकाय, ३ आकाशास्तिकाय, ४ पुद्गलास्तिकाय, ५ जीवास्तिकाय, और ६ । काल । इन छः द्रव्यों की संक्षिप्त व्याख्या को देखें: १धर्मास्तिकाय--संसार मे इस नाम का एक अरूपी पदार्थ है जीव और पुद्गल (जड) की गति में सहायक होना-इस पदार्थ का कार्य है। यद्यपि जीव और पुद्गल में चलने का सामर्थ्य है, परन्तु धर्मास्तिकाय की सहायता विना वह फलीभूत नहीं होता। जिस प्रकार मछली मे चलने का सामर्थ्य है, परन्तु पानी विना वह नहीं चल सकती, उसी प्रकार यह पदार्थ जीव और पुद्गल की चलनक्रिया में सहायक होता है। इस धर्मास्तिकाय के तीन भेद है। १ स्कंध, २ देश, और ३ प्रदेश। ___ एक समूहात्मक पदार्थ को स्कन्ध कहते हैं। स्कन्ध के जुदा जुदा भागों को देश कहते है और प्रदेश उसे कहते हैं कि जिस का फिर विभाग न हो सके।
SR No.010196
Book TitleJagat aur Jain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri, Hiralal Duggad
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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