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________________ वृन्दावन गुरुकुल के उत्सव पर विद्यापरिषद् के सभापतिपद से संस्कृत में दिये हुए भाषण का अनुवाद हे भाग्यशाली सभ्यमहोदयगण | यद्यपि मैं इस बात को नहीं जान सकता कि विद्वानों की इस विद्यापरिषद् का मुझे आप ने सभापति क्यों चुना है ? तथापि मैं इतना तो अवश्य ही कहूँगा कि यदि इस पद से किसी आर्यसमाजी महाशय को सुशोभित किया जाता तो विशेष उपयुक्त होता । किन्तु मैं आप सज्जनों के अनुरोध को उल्लंघन करने मे असमर्थ होने के कारण आप सज्जनों के द्वारा दिये गये पद को स्वीकार करता हूँ । आज की सभा का उद्देश्य 'धर्मपरावर्तनमीमांसा' रखा गया है । इसका तात्पर्य मैं तो यही समझता हूँ कि वर्त्तमान समय में जो अनेक प्रकार के कुमत अपने आपको
SR No.010196
Book TitleJagat aur Jain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri, Hiralal Duggad
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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