SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयशंकर 'प्रसाद' कहीं तो नाटकों की कथा की टूटी शृङ्खला जोड़ी है और कहीं रसानुभूति को तीव्र किया है । इन्हीं दो रूपों में 'प्रसाद' जी ने अपनी कल्पना से काम लिया है। 'अजातशत्र' में मागधी और श्यामावती एक कर दी गई हैं। शैलेन्द्र और विरुद्धक को भी एक पात्र बना दिया गया है। भटार्क और अनन्त देवी का सम्बन्ध इसकी दृष्टि से ही किया गया है। मालव में उज्जयिनी को स्कन्दगुप्त की राजधानी बनाना भी काल्पनिक है। भीमवर्मा तथा बन्धुवर्मा का भाई होना भी अभी तक इतिहास नहीं मानता। शर्वनाग, चक्रपालित भी काल्पनिक पात्र हैं। 'चन्द्रगुप्त' में तक्षशिला में चन्द्रगुप्त और चाणक्य का सम्बन्ध भी इतिहास-सम्मत नहीं। चन्द्रगुप्त मालवों और क्षुद्रकों का सम्मिलित सेनापति बना था, इतिहास में यह बात नहीं मिलती। मालविका विजया, देवसेना, जयमाला, मंदाकिनी, अलका आदि सभी काल्पनिक पात्र हैं। चाणक्य का कारावास फिलिप्स चन्द्रगुप्त का द्वन्द्व युद्ध, दाण्ड्यायन की भविष्य-वाणी श्रादि कल्पित ही हैं। इतना ध्यान रखना चाहिए कि प्रसाद जी की कल्पना ने इतिहास के ढाँचे में मधुर स्पन्दमय प्राण ही डाले हैं उसका रूप बिगाड़ा नहीं। कोई ऐसी कल्पना भी नहीं कि जिससे इतिहास का कोई अनर्थ हो जाय ।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy