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________________ १६ हिन्दी के नाटककार हैं। इसके अतिरिक्त, वैसा हास्य जैसा कि पारसी-मण्डलियों के नाटकों में चलता था, हास्यास्पद है। तो भी 'प्रसाद' जी ने कहीं-कहीं विनोद-स्थल जुटाने का प्रयत्न किया है । कहीं तो 'प्रसाद'जी ने हास्य की योजना किसी पात्र के द्वारा ही कर दी है। जैसे महापिंगल, ('विशाख' में ) काश्यप ('जन्मेजय का नाग यज्ञ' में) मधुक ('राज्यश्री' में) और कहीं नया पात्र-निर्माण करके अर्थात् विदूषक के द्वारा जैसे बसन्तक (अजात शत्र' में) और मुद्गज ('स्कन्दगुप्त में) के द्वारा । कहीं-कहीं पारस्परिक विनोद के रूप में जैसे कुमारगुप्त, धातुसेन, पृथ्वीसेन का वार्तालाप । पर प्रसाद में हास्य न के बराबर है। वर्तमान का चित्रण 'प्रसाद' के नाटकों में वर्तमान युग के भी चमकते चित्र मिलते हैं। नाटक वे ही अमर होते हैं, जो भूत और भविष्य की शृङ्खला को वर्तमान की कड़ी से जोड़ दें। 'प्रसाद' के प्रायः सभी नाटकों में यह गुण हैं। 'ध्र वस्वामिनी' तो सम्पूर्ण रूप में वर्तमान का चित्र है । 'चन्द्रगुप्त' और 'स्कन्दगुप्त' तो आधुनिकता से भरे पड़े हैं। अलका का अलख जगाना, वर्तमान राष्ट्रीय आंदोलन में नारियों के भाग को स्पष्ट करता है : “आक्रमणकारी ब्राह्मण, और बौद्ध का भेद न रखेगे" में हिन्दू मुसलमान-एकता की झलक है। "मालव और मागध को भूलकर जब तुम आर्यावर्त का नाम लोगे तभी वह आत्म-सम्मान मिलेगा।" ये हमारी प्रान्तीयता का चित्र है। 'स्कन्दगुप्त' भी राष्ट्रीय भारत का ही रूप है। "मेरा देश मालवती नहीं तक्षशिला भी है, समस्त आर्यावर्त है।" में अखण्ड भारत की भावना है। "अन्न पर अधिकार है भूखों का और धन पर अधिकार है देश का।' समाजवादी विचार-धारा का प्रकाशक है। __ 'स्कन्द गुप्त' में चैत्य के पास जो बौद्धों और ब्राह्मणों का संघर्ष है वह नाटकीय आवश्यकताओं को इतना पूरा नहीं करता, जितना हिन्दू-मुसलिम झगड़ों का रूप सामने रखता है। 'मूर्ख जनता धर्म की प्रोट में नचाई जा रही है।' विदेशी शासकों द्वारा बरती गई भेद-नीति का भण्डा-फोड़ करता है । हिन्दु-मुसलमानों को लड़ाकर अंग्रेज अपना उल्लू सीधा करते रहे है। कल्पना का योग ' यद्यपि 'प्रसाद' जी के नाटक ऐतिहासिक हैं, तो भी उनमें कल्पना का पर्याप्त भाग पाया जाता है। अपनी तीक्ष्ण कल्पना-शक्ति से 'प्रसाद' जी ने
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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