SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी के नाटककार 'राज्यश्री' ६५, 'जन्मेजय का नागयज्ञ' १०७, 'स्कन्दगुप्त' १६० और 'चन्द्रगुप्त' २१० पृष्ठों के नाटक हैं । 'ध्र वस्वामिनी' ८० पृष्ठ का हो है। 'चन्द्रगुप्त' के अतिरिक्त किसी पर भी लम्बाई का आक्षेप नहीं किया जा सकता। पद्यात्मक संवाद निकाले जा सकते हैं। गीत कम किये जा सकते हैं। 'स्वगत' अस्वाभाविक रूप में केवल 'विशाख', 'राज्यश्री' और 'अजातशत्र' में ही आये हैं। स्कन्दगुप्त' में केवल एक स्वगत अस्वाभाविक और अनावश्यक है। इनको निकाल देने से नाटक की प्रास्मा को तनिक भी ठेस नहीं पहुँचती। भाषा-सन्बन्धी आक्षेप भी जितना 'स्कन्दगुप्त' और 'चन्द्रगुप्त' पर ही लागू होता है, अन्य नाटकों पर उतना नहीं । 'अजातशत्रु' में २१ पद्य हैं। इनको निकाल देने पर इसकी लम्बाई लगभग १०० पृष्ठ ही रह जाती है। भाषा-सम्बन्धी दोष ऐमा मुख्य दोष नहीं कि नाटकों का अभिनय ही न किया जा सके-यही होगा न, कि साधारण अपढ़ लोग उसे न देख सकेंगे। तब वह शिक्षितों के लिए ही अभिनय किया जा सकता है। पारसी-कम्पनियों की उद् कौन समझता था, भाज भी 'मिनर्वा' के चित्रों की फारसीमय उर्दू कौन समझता है, फिर भी दर्शक जाते हैं—केवल अभिनय के कारण। ____ अभिनय का सम्बन्ध ऊपर दी गई बातों से अवश्य है, पर सबसे अधिक सम्बन्ध है दृश्य-विधान से । दृश्य-विधान यदि गलत है, तो चाहे जितनी सरल भाषा हो, चाहे जितने कम गाने हों, चाहे जितने संक्षिप्त संवाद हों और चाहे जितने छोटे नाटक हों, अभिनय असम्भव है। 'अजातशत्रु' के पहले अङ्क में दृश्य-विधान-सम्बन्धी कोई दोष नहीं। दूसरा अङ्क भी निर्दोष है। इसमें पहला दृश्य-अजातशत्र की राज-सभा, दूसरा-पथ, तीसरा-उपवन राज-सभा के आगे का पट गिराकर पथ दिखाया जा सकता है, तब तक राज-सभा का सामान हटाकर वाटिका का दृश्य बनाया जा सकता है। तोसरे अङ्क में थोड़ी-सी कठिनाई पड़ेगी, जिसे दूर करने के लिए कोई भारी मंचकला अपेक्षित नहीं। 'जन्मेजय का नागयज्ञ' की अभिनय-समस्या भी सुलझाना सरल है। पहले अङ्क का दृश्य विधान यों है-१ कानन, २ गुरुकुल, ३ राज-सभा, ४ पथ, ५ कानन, ६ गुरुकुल, ७ कानन । पहला श्रङ्क निर्माण करने में कोई कठिनता नहीं । इसी प्रकार दूसरा अङ्क भी है। तीसरा अङ्क भी सरल है। 'राज्यश्री', 'अजातशत्रु', 'नागयज्ञ' तीनों नाटक अभिनय के योग्य बनाये
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy