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________________ जयशंकर प्रसाद ११ भी स्पष्ट हो जाता है। यही बात 'स्कन्दगुप्त' में भी है। स्कन्दगुप्त का दार्शनिक वीर चरित्र प्रथम दृश्य में ही पता चल जाता है। ___ 'प्रसाद' के नाटकों का अन्त मौलिक ढङ्ग से होता है । न तो दुःखान्त, और न सुखान्त ही। समीक्षकों ने इस प्रकार के नाटकों को 'प्रसादान्त' या 'प्रशान्त' कहा है । 'अजातशत्र' में बिम्बमार लड़खडाकर गिरता है। उसकी मृत्यु का यह संकेत है और इन शोक-विह्वल क्षणों में भगवान् गौतम का प्रवेश होता है। विश्व-कल्याण की शान्त और करुण मूर्ति शोक के आँसू पोंछ देती है। 'चन्द्रगुप्त' में राष्ट्र का निर्माण होता है। पर कल्याणी की मृत्यु हो चुकती है, जिसे चन्द्रगुप्त ने भी शैशव से प्रेम किया था। सुवासिनी का भी त्याग चाणक्य कर देता है। पर राष्ट्र विदेशी यवन-अातंक से निर्भय कर दिया जाता है। 'स्कन्दगुप्त' में भी देवसेना और स्कन्दगुप्त का बिछोह हो जाता है-उनकी कामना अतृप्त ही रह जाती है, पर भारत स्वाधीन है। _ 'प्रसाद' के नाटकों में करुणा की एक सधन बदली छा जाती है। 'स्कन्दगुप्त' में यह सबसे अधिक भीगी, अश्रु-छल-छल और वेदना-चंचल होकर पाई है । यही त्याग और विश्व-कल्याण का रूप 'प्रसादान्त' शैली बनकर पाया है। करुणा और त्याग के दो कूलों में मंगल की धारा बहती है-यही बौद्ध और आर्य दर्शन से निर्मित 'प्रसाद' की कला है । अभिनेयता अभिनय के विषय में 'प्रसाद' जी का मत था, "नाटकों के लिए रंगमंच की रचना होनी चाहिए, न कि रंगमंच के लिए नाटक लिखे जाने चाहिएं।" इसलिए 'प्रसाद' जी के नाटकों में रंगमंच-सम्बन्धी त्रुटियाँ पर्याप्त संख्या में हैं। 'प्रसाद' जी ने रंगमंच की सहुलियत का बहुत ही कम ध्यान रखा है। अभिनय के सम्बन्ध में 'प्रसाद' जी के नाटकों में कई दोषों का संकेत अालोचक करते हैं-"नाटक बहुन बड़े हैं । कथोपकथन बहुत लम्बे हैं : भाषा कठिन है। स्वगतों की भरमार है। काव्यात्मकता और गीतों का बाहल्य है । दृश्य-विधान भी अभिनयोचित नहीं । इसलिए 'प्रसाद' के नाटकों का अभिनय नहीं हो सकता ।" इन आक्षेपों का उत्तर देते हुए कहा जा सकता है- "आक्षेप सभी नाटकों पर लागू नही होते । 'चन्दगुप्त' को छोड़कर सभी नाटक छोटे हैं, ढाई घण्टे से अधिक समय अभिनय में नहीं लग सकता।' 'अजातशत्रु । १३०,
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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