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________________ ८६ हिन्दी के नाटककार समान छटपटाकर वह अन्तर्ध्यान हो जाती है। राष्ट्र के लिए भीग्व तक माँगना; बड़े-से-बड़ा कष्ट सहना, प्यार की करुण वेदना की तड़प को दिल की धड़कन में ही दबाये रहना-नारी-जीवन का एक विवश चीत्कार है ! उसी चीत्कार की प्रतिमूर्ति है देवसेना ! देवसेना एक करुणा भीगी सिहरन के समान है, जो नाटक में एक नीर-भरी बदली बनकर पाती है। दूसरे प्रकार के नारी-चरित्र प्रतिनायिकाओं के रूप में नाटकों में पाये हैं। शक्तिमती, छलना, सुरमा, अनन्तदेवी, विजया नारी की दूसरी तस्वीरें हैं । ये सभी राजनीति के दाँव-पेंचों में पड़ी षड्यन्त्रकारी नारियों हैं । राजनीति के छल-कपट में पड़कर ये अपना नारीत्व खो देती है। महत्वाकांक्षा की आँधी इन्हें विनाश के पथ पर ले जाती है और ये नारीत्व का भयंकर और अश्रेयस्कर रूप धारण करती हैं। पर लेखक नारी के प्रति आस्थावान है, वह उनको इस अप्राकृत विनाशकारी और कपटी रूप में नहीं देखना चाहता इन सभी का सुधार वह कर देता है। सभी पश्चात्ताप की आग में तपकर भली नारी की श्रेणी में आ जाती हैं। ___ "मुझे भी महारानी (दण्ड दीजिए), स्त्री की मर्यादा ! करुणा की देवी ! राज्यश्री, मुझे भी दण्ड ।" सुरमा इस प्रकार अपने किये पर पछता लेती है। ___ "दण्डनायक, मेरे शासक, क्यों न उसी समय शील और विनय के नियम भंग के अपराध में आपने मुझे दण्ड दिया ? क्षमा करके-सहन करके जो आपने इस परिणाम की यन्त्रणा के गर्त में मुझे डाल दिया है, वह मैं मांग चुकी अब मुझे उबारिये।" छलना अपने कर्मों की कटुता को इस प्रकार धो डालती है। __विजया आत्म-घात करके स्वयं भी अपना और अपने कर्मों का अंत कर लेती है। अनंतदेवी को स्कन्दगुप्त क्षमा कर देता है । वह भी अपने दुष्कर्मों के लिए पछताती है । नारी की मर्यादा-रक्षा का यह भी एक मार्ग है, जिसका अवलम्बन 'प्रसाद' ने लिया है। एक तीसरा वर्ग भी नारी-चरित्र का 'प्रसाद' के नाटकों में पाया जाता है, वह है यथार्थवादी नारी का । जैसे जयमाला, कमला, राम आदि । इसके अतिरिक्त बाजिरा और मणिमाला जैसी मुग्ध-मना भोली दुलहनें भी प्रसाद के नाटकों में है। 'प्रसाद' जी ने अपने नाटकों में स्त्री-पुरुष के विभिन्न रूप उपस्थित किये हैं। सभी अपने-अपो रूपों में अपने-अपने क्षेत्रों में और अपने-अपने कार्य-कलापों में जानदार हैं-यथार्थ के अधिक निकट हैं। सभी स्वतन्त्र व्यक्तित्व वाले हैं-सभी गतिशील हैं।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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