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________________ जयशंकर 'प्रसाद' ८३ | बुद्ध की करुणा और सम्यकता का प्रभाव नाटकों में स्पष्ट है । 'प्रसाद' की कला पर भी इसका प्रभाव है । विश्व मंगल में ही सब नाटकों का प्रायः अन्त होता है और अधिकतर नाटकों में विश्व कल्याण के लिए किये बलिदान एक करुण उच्छ्वास छोड़ जाते हैं । करुणा और वैराग्य के दोनों तटों के बीच मानव-मंगल की सुधा सरिता प्रवाहित होती है । 'अजातशत्र', 'स्कन्दगुप्त' और 'चन्द्रगुप्त' में दुःख के साथ यह कल्याण- भावना या प्रशान्त जीवन-दर्शन की मंदाकिनी देखी जा सकती है । इन्हीं विभिन्न आस्थाओं, विश्वासों, विचारों और भावनाओं से मिलकर 'प्रसाद' जी की दार्शनिकता की प्रतिष्ठा नाटकों में हुई । पात्र : चरित्र - विकास । 'प्रसाद' के प्रायः सभी नाटक ऐतिहासिक हैं । पात्र भी इतिहास प्रसिद्ध व्यक्ति हैं, काल्पनिक कम इतिहास के यथार्थ व्यक्ति होने के कारण उनमें अपनी कल्पना से अधिक रंग नहीं भरा जा सकता। इसमें सन्देह नहीं कि 'प्रसाद' ने पात्रों के चरित्रों को प्राणवान तथा रंगीन बनाने और जीवन की यथार्थ धरती पर लाने के लिए अपनी कल्पना के अधिकार का भी उचित उपयोग किया है । 'प्रसाद' के सभी नायक भारतीय नायक के गुणों से युक्त हैं । हर्ष अजातशत्र ु, जनमेजय, स्कन्दगुप्त, और चन्द्रगुप्त मौर्य) चन्द्रगुप्त (गुप्त वंशीय ) धीरोदात्त नायक हैं। ये विनीत, मधुर, वीर, त्यागी, तेजस्वी धार्मिक, युवा, निर्भय, धीर, न्यायी, स्थिर, प्रियंवद, अभिजात, दक्ष और बुद्धिमान हैं । प्रतिनायक धीरोदात्त स्वभाव वाले हैं। भकि, राक्षस, ग्राम्भीक, रामगुप्त, तक्षक यदि अहंकारी, छली, प्रपंची, प्रचण्ड, वीर, निर्भय, चपल, मायावी तथा आत्म - श्लाघा से युक्त भारतीय शास्त्र की दृष्टि से नायक, उपनायक तथा प्रतिनायक एक विशेष वर्ग की ही श्रेणी में श्राते हैं । यही बात नायिकाओं के विषय में भी कही जा सकती है । भारतीय 'साधारणीकरण' के सिद्धान्तानुसार नायक या प्रतिनायक विशेष गुणों से युक्त होगा, तभी रसानुभूति हो सकेगी। एक ओर तो 'प्रसाद' के चरित्रों के निर्माण में 'साधारणीकरण' का सिद्धान्त लागू होता है, दूसरी ओर उनमें 'व्यक्ति-वैचित्र्य' वाला पश्चिमी सिद्धान्त भी पाया जाता है । 'प्रसाद' के नायक वीरता के श्रादर्श, त्याग के अनुपम उदाहरण और कष्ट - सहिष्णुता की मूर्तियाँ हैं । उनकी तलवारों की बिजली कौंधती है - शत्रु श्र के कलेजों के पार उनके खड्ग हो जाते हैं। मानव-जीवन की सघन अन्धकारा
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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