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________________ ७६ हिन्दी के नाटककार करुण रागिनी तड़प उठेगी सुना न ऐसी पुकार कोकिल । भरा नैनों में मन में रूप । किसी छलिया का अमल अनूप । ' xxx उमड़ कर चली भिगोने आज, तुम्हारा निश्चल अंचल छोर । नयन-जल-धारा, रे प्रतिकूल, देख ले तू फिरकर इस अोर ऊपर दिये गए 'स्कन्द गप्त' के तीनों गीत शैली के रूप में ही नहीं भाव और अर्थ के अनुसार भी छायावादी हैं। दूसरा गीत तो पूरा रहस्यवादी दर्शन से ओत-प्रोत है : निकल मत बाहर दुर्बल अाह, लगेगा तुझे हँसी का शीत । बिखरी किरण अलक व्याकुल हो बिरस वदन पर चिन्ता-लेख । सुधा-सीकर से नहला दो । 'चन्द्रगुप्त' के ऊपर दिये गए गीतों में भी नाटकीय अनुरोध, प्रसंग या आवश्यकता अधिक नहीं है। प्रसाद के नाटकों के बहुत-से गीत तो गीन नहीं, छायावादी पाठ्य कविताए हैं। इनके बहुत-से गीतों को नाटकों मे निकालकर किसी संग्रह-पुस्तक में रख दिया जाय, तब भी उनम्मे वही रस प्राप्त हो जायगा, जो अन्य मुक्तकों से होता है। ___ नाटकों के बहुसंख्यक गीत प्रसाद के कवि की प्रेरणा है, उनकी भावुकता की माँग हैं, उनकी रंगीन कल्पना का ही अनुरोध-मात्र हैं। प्रेम का स्वरूप प्रसाद के नाटक शृङ्गार-सम्पन्न वीर-रस प्रधान हैं। प्रेम की प्रेरणा पाकर देश के दीवाने युद्ध भूमि में शत्रु श्रओं को ललकारते हैं, युद्ध में तीचण खड्गों के श्राघातों से क्षत-विक्षत निराशा के श्रातप ताप से मुरझाये वोर प्रेम की मधु
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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