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________________ जयशंकर प्रसाद' शृङ्गार किया और अलंकारों का अभूतपूर्व ढंग से प्रयोग किया। प्राचीनता को नवीन जीवन दिया-नवीन प्राण दिये । कहानी, उपन्यास, कविता, 'नाटक, निबंध, पुरात्तत्व, इतिहास-सभी क्षेत्रों में उन्होंने अलौकिक कार्य किया । और सभी अोर सांस्कृतिक चेतना प्रसाद को प्रेरित कर रही है। नाटकों का काल-क्रम १-सज्जन सन् १९१०-११ २--कल्याणी-परिणय १९१२ ३-करुणालय ४-प्रायश्चित्त ५-राज्यश्री ६-विशाख १६२१ ७-अजातशत्रु १९२२ ८-कामना (प्रकाशित १६२७) १६२३-२४ है-जन्मेजय का नागयज्ञ १९२६ १०-स्कन्दगुप्त १६२८ ११-एक घूट १६२६ १२-चन्द्रगुप्त १३-ध्रुवस्वामिनी सांस्कृतिक चेतना सांस्कृतिक चेतना प्रसाद के सभी नाटकों की प्राण है-यही उनके लिए सबल प्रेरणा है। प्रसाद के हृदय में भारतीय संस्कृति को पुनः प्रतिष्ठा करने के लिए तीब्र श्राकुलता है। इसी की जादूभरी प्रेरणा पाकर प्रसाद ने पुरातत्त्व की खोज की और दबे रत्नों को निकाला। इसी भारतीय श्रालोकमयी तेजस्वी संस्कृति के रंग-बिरंगे चित्र प्रसादजी ने अपने नाटकों में दिये हैं। प्रसादजी की पुतलियों ने देखा कि भारतीय संस्कृति पद-दलित हो रही है। उसी की गोद में, उसी का अमृत-जैसा दूध पीकर पले भारतीय उसका तिरस्कार कर रहे हैं और विदेशी सभ्यता के पीछे पागल हो रहे हैं। उनकी पलकों में ममता के आँसू छलक आए । प्रथम चार एकांकी हैं। 'एक घूट' और 'कामना' भाव-रूपक है और शेष सभी ऐतिहासिक नाटक ।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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