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________________ : २ : जयशंकर 'प्रसाद' प्रसाद का व्यक्तित्व नवजागरण के मंगल प्रभात में भारतेन्दु की प्रतिभा किरण प्रकाश का सन्देश देकर समय ही विलीन हो गई । साहित्य में फिर शिथिलता और जड़ता का अन्धकार छा गया, यद्यपि श्रनेक साहित्य स्रष्टा अपनी प्रतिभा से कुछ-न-कुछ प्रकाश प्रदान करते ही रहे । जागरण की गोद में प्रसाद जी लौकिक प्रतिभा लिये दिव्य प्रकाश पिण्ड के समान प्रकट हुए। प्रसाद ने साहित्य के हर क्षेत्र में - सुदूर कोनों तक को प्रकाशित किया । उनका महान् व्यक्तित्व हिन्दी साहित्य में वरदान के समान उदित हुआ । प्रसादजी भारतीय सांस्कृतिक जागरण के देवदूत थे । उनके व्यक्तित्व में बौद्धों की करुणा, श्रार्यों का श्रानन्दवाद और ब्राह्मणों का तेज था । भारतीय अतीत के अनन्य उद्धारक और उपासक 'प्रसाद' के हृदय में आर्य-संस्कृति के प्रति अगाध ममता थी । उस प्रतीत संस्कृति में उनको मानवता का महान् दर्शन हुआ था और उनका दृढ़ विश्वास था कि यही सांस्कृतिक उत्थान भारतीय जीवन को दिव्य बना सकता है—उसमें प्राणप्रतिष्ठा कर सकता है- - सशक्त गति ला सकता है। हमारी यही संस्कृतिजिसमें त्याग का गौरव है, विजय की शक्ति है, करुणा की तरलता है और क्षमा की श्रनुकम्पा है - पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध को रोक सकती है। दी संस्कृति का प्रसादजी कल्पना के कोष और प्रतिभा के अखण्ड भण्डार थे । उन्होंने अपनी प्रतिभा से अतीत की मोटी-मोटी दुर्भेद्य तद्दों उद्धार किया । अपनी रंगीन कल्पना का रंग चढ़ा, उस संस्कृति के अलभ्य - अमूल्य रत्नों को विश्व के पारखियों के सामने रखा। यही संस्कृति उनके नाटकों, कविताओं, कहानियों, निबंधों आदि में सजग होकर आई। भाषा को उन्होंने नवीन रूप दिया, भावों को नये साँचे में ढाला, कला का अभिनव
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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