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________________ ५३ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पाए जाते हैं। प्रारम्भ से अन्त तक दिव्य गुणों से सम्पन्न ये लोग हैं। इसके विपरीत 'नील देवी' का प्रतिनायक भी सभी दुष्ट गुणों से युक्त है। विद्या, शेव्या (तारा), नील देवी, चन्द्रावली आदि नारियाँ भी सद्गुणों से युक्त हैं। ये सभी भारतीय नारीत्व के आदर्शों के विभिन्न रूप हैं । विद्या एकनिष्ठ प्रेमिका धर्यशाजी, शीलवती, विदुषी, पंडिता, विनोदी युवती है। शेव्या ( हरिश्चन्द्र की . पत्नी । अादर्श पतिव्रता, धैर्यशीला, कष्टसहिष्णु, सेवापरायण, पति को चिर सहचरी और मातृत्व तथा पत्नीत्व की श्रादर्श प्रतिमा है । नील देवी एक वीरांगना क्षत्राणी है। बुद्धिमती, निर्भय, सबला नील देवी दुर्गा के समान आततायी शत्र का कलेका चीर डालती है । चन्द्रावती भी आदर्श प्रेमिका है । प्रेम जिसके जीवन की साँसें हैंप्रेम जिसके हृदय की धड़कन है। सभी नारी-पात्र एक विशेष वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं-सभी एक विशेष प्रादर्श के रूप को उपस्थित करते हैं। अधिकतर पुरुष और स्त्री-दोनों ही पात्र एकरंगी हैं। इस एकरंगी चरित्र-चित्रण में लेखक को कुछ भी कठिनता नहीं पड़ती। आत्म-संघर्ष, अन्तद्वन्द्व या मनोवैज्ञानिक परिवर्तन का स्वाभाविक चित्रण करना ही चरित्र-चित्रण को सर्वश्रेष्ठ सफलता है। भारतेन्दु के नाटकों के पात्र एक विशेष प्रकार के क्षेत्र से चुने गए हैं, इसलिए उनसे अाधुनिक चरित्रचित्रण की कला की अाशा नहीं करनी चाहिए; तो भी उन्होंने अन्तद्वन्द्व दिखाने का प्रयास अवश्य किया है। उस युग के अनुसार यह कम प्रशंसनीय नहीं । विद्या का पिता प्रतिज्ञा के विषय में सोचता है : “जो मैं ऐसा जानता तो अपनी कन्या को ऐसी कड़ी प्रतिज्ञा न करने देता, पर अब तो उसे मिटा भी नहीं सकता।" इन शब्दों से उसके मन की डाँवाडोल स्थिति का पता चलता है। विद्या स्वयं एक स्थान पर कहती है : “गुणसिन्धु राजा के पुत्र यहीं हैं और निश्चय बिना तो विवाह भी नहीं हो सकता, इससे मेरा मन दुविधे में पड़ा है।" । 'चन्द्रावली' में यद्यपि चरित्र के विभिन्न गुणों का विस्तार असम्भव है, केवल प्रेम का ही एकरस राग उस में बज रहा है तो भी लेखक ने चन्द्रावली के हृदय का उद्घाटन करने का प्रयत्न किया अवश्य है : "किससे कहूँ और क्या कहूँ, क्यों कहूँ, कौन सुने और सुने भी तो कौन समझे हा !" के इस उच्छ्वास में उसके प्रेम की व्यग्रता और निराश होकर मन में घुमड़ने वाली उदासीन पीड़ा का अच्छा चित्रण है । "झूठे ! झठे ! झूठे ही नहीं, वरंच विश्वास-घातक क्यों इतनी छाती ठोक और हाथ उठा-उठा कर लोगों
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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