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________________ हिन्दी नाटककार बहुत-कुछ उत्तरदायित्व जीवन के प्रति सुखमय दृष्टिकोण पर डाला जा सकता है। पर सर्वदा भारतीय जीवन में प्रानन्दवादी दर्शक का ही प्रभाव महीं रहा । बौद्ध दर्शन में तो आनन्दवाद का तिरस्कार है। करुण। यौद्ध दर्शन को अात्मा है । करुणा के द्वारा ही प्रात्मा निर्वाण-पथ पर अग्रसर होती है। बौद्ध दर्शन का प्रभाव भारतीय जीवन पर कम तो नहीं रहा । प्रभाव के अनुपात को देखें तो आज भी भारतीय जीवन में विश्व के प्रति विरागपूर्ण दृष्टिकोण ही अधिक मिलेगा। श्रानन्दवादी दृष्टिकोण भी पूर्ण रूप से दुःखान्त नाटकों के अभाव के लिए उत्तरदायी नहीं। __ दूसरा और पाँचवाँ कारण समीक्षकों की कल्पना की कसरत है। यदि दुःखान्त नाटक देखनेसे हृदयमें कृत्रिम करुणा उत्पन्न होगी तो सुखान्त नाटक देखने से रति, उत्साह, क्रोध, हास तथा विस्मय भी कृत्रिम ही होंगे। कृत्रिम भावोदय या भावोत्तेजन में रसानुभूति हो ही नहीं सकती। फिर पालीकिक आनन्द या ब्रह्मानन्द का सहोदर (अनुज या अग्रज जो भी हो) कहाँ से प्राप्त होगा ? तब तो रस-सद्धान्त अवैज्ञानिक हुा । और जिस प्रकार नाटक में करुणा, वेदना, दुःखान्त जीवन देखकर हम आदो हो जायंगे, दुखी मनुष्य को देखकर हमारे हृदय में दया, संवेदना करुणा उत्पन्न न होगी, उसी प्रकार क्या रति उत्साह, हास, विस्मय आदि के दृश्य देखकर भी हम श्रादी नहीं हो जायंगे ? किसी वीर की उत्साहपूर्ण वीरोक्तियाँ सुनकर उसको विजय में हमें श्रानन्द न होगा-उत्साह न होगा, किसी अद्भुत कार्य को देखकर विस्मय न होगा, किसी अद्भुत कार्य की बातों पर हँसी न पायगी । तब सुखान्त नाटक की भी क्या आवश्यकता ? ईश्वरीय न्याय पर सन्देह होने की बात तो और भी हास्यास्पद है। जब एक मनुष्य जीवन में देखता है कि एक सज्जन, सदाचारी, परोपकारी पर कष्ट पर-कष्ट पाते हैं-गांधी-जैसे सन्त गोली से मार दिए जाने हैं-शंकर और दयानन्द को भी विष दिया जाता है तब उसको ईश्वरीय न्याय में श्रास्था रह जायगी ? यदि जीवन में सत्य होते हुए वह देखता है कि अनेक भले आदमियों का जीवन वेदना में ही व्यतीत होता है, तब उसकी भावना पर चोट नहीं पहुँचती ? नाटक में तो फिर भी बचाव है-वह यथार्थ नहीं, रूपक है-अभिनय है । कृत्रिम करुणा के सिद्धान्तानुसार नाटेक कृत्रिम है। दूसरा और पाँचवाँ कारण केवल संख्या बढ़ाने के लिए ही है, इनमें तथ्य कुछ भी नहीं। भारतीय साहित्य में दुःखान्त नाटक न लिखे जाने के कारण कुछ और भी
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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