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________________ २६४ हिन्दी के नाटककार की भूल' में मानिकलाल और एक वेश्या फूलमनि के प्रेम की कथा दी गई है। मानिकलाल द्वारा अपनी पत्नी रमा का त्याग, फूलमनि द्वारा उसकी सब सम्पत्ति का अपहरण, अपने नौकर की हत्या का अभियोग लगाकर फूलमनि द्वारा मानिकलाल को जेल भिजवाना, मानिकलाल के मित्र मोहन, उनके नौकर और रमा द्वारा षड्यंत्र का पता लगना और मानिकलाल का जेलमुक्त किया जाना आदि घटेनाए । नाटक की कथावस्तु का संघटन करती हैं। 'हिन्दू-कन्या' भी सामाजिक नाटक है। इसमें एक पति अपने पिता के बहकावे में श्राकर अपनी पत्नी का त्याग कर देता है । दोव लगाया जाता है कि वह अछूत-कन्या है। इसमें पत्नी की कष्ट-सहिष्णुता, पतिव्रत-पालन, श्रादर्श आदि दिखाया गया है। पौराणिक नाटकों के विषय में इतनी विशेषता मेहरा जी ने अवश्य की है कि उनमें वर्तमान जीवन की मलक दिखाकर सुधार का मार्ग दिखाया गया है। चरित्र और घटनाए। तो अधिकतर चिर परिचित हैं। सामाजिक नाटक तो सभी सुधारक भावना से प्रेरित हैं। 'जवानी की भूल' और 'हिन्दू कन्या' के कथानक से जैसा कि स्पष्ट है। वर्तमान जवानी की समस्याए भी इन्होंने ली हैं, पर वे समस्याए मनोवैज्ञानिक नहीं समाज के बाह्य ढाँचे से ही अधिक सम्बन्ध रखती हैं। और मेहरा जी को सुधार की इतनी धुन है कि वे उपदेशक से मालूम होते हैं। इनके नाटकों की भाषा प्रौढ़, जोशीली, चलती हुई, नाटकोचित और पद्य-संवादों से पूर्ण है। गीत अधिकतर गजल हैं। __कथा में चमत्कारिता तो है ही, साथ ही प्रमुख कथा के साथ हास्य-कथा भी अन्त तक चलती है, जैसा कि उस युग के सभी नाटकों से देखने को मिलता है। 'जवानी की भूल' में सम्पतराय की कथा है जो घुड़दौड़ और जुए में अपनी सभी सम्पत्ति गंवाकर कंगाल हो जाता है और 'हिन्दू-कन्या' में बड़ा बाबू' की मजाकिया कहानी है। 'बड़ा बाबू' अच्छा प्रहसन है । प्रमुख कथा के साथ हास्य की कथा से नाटक का जो गम्भीर प्रभाव पड़ता , वह समाप्त हो जाता है। पर उस समय ऐसी परम्परा थी, इसलिए कोई भी नाटककार इस ना-समझी से नहीं बच सका । इनके नाटकों में करुण रस की विशेषता रहती है । करुणा का इतना परिपाक होता है कि दर्शक आँसू भर ला । __ रंगमंच की दृष्टि से इनके नाटक बहुत अच्छे हैं। सुरुचि और शिक्षा भी इनके नाटक देते हैं ; पर मजाक अधिकतर ऊँचे स्तर का नहीं होता । मेहरा साहब की भी हिन्दी-रंगमंच को बड़ी देन हैं। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं किया जा सकता।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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