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________________ २५६ हिन्दी के नाटककार यह प्रस्ताव कर बैठता कि तुम मेरा प्रेम स्वीकार करो-मुझ से विवाह करके मुझे कृतार्थ करो।" इला फिर भी दृढ़ है । अंत में नवीन पुलिस की गोली का शिकार होकर प्राण त्यागता है, तब इला अपने हृदय में बल पूर्वक दबाकर रखी हुई प्रेम की वेदना का अनुभव करती है। वह कहती है,"अब मैं अपनी दुर्बलता न छिपाऊँगी। मै आज निस्संकोच होकर कहना चाहती हूँ कि मै शहीद नवीनचन्द्र की विधवा हूँ। मै अाज प्रेम को पुनः पुनः-अपना समर्पण घोषित करती हूँ, विवाह को अपना समर्पण घोषित करती हूँ, सम्पूर्ण और बिना शर्त समर्पण ! और इस समर्पण पर आज मै गौरव अनुभव कर रही हूँ।" नारी इस नाटक में ही स्थान-स्थान पर बहुत ही स्वाधीन चिंतक, निर्भय मौर सशक्त होकर आई है। 'समर्पण' के द्वारा लेखक ने विवाह की अनिवार्यता सिद्ध की है। नवीनइला, राजेन्द्र-माया, विनोद-माध्वी-तीन जोड़े भी बना दिए गए हैं। पर नाटक में परिस्थितियों का विकास नहीं है। कथावस्तु भी शक्तिशाली या गुम्फित नहीं । हाँ, विचारों की दृष्टि से नाटक सम्पन्न है। अभिनय की दृष्टि से सभी दृश्य सरल है। उनका विधान भी अच्छा है। निर्माण में कोई कठिनाई नहीं उत्पन्न हो सकती । नाटक में केवल तीन अंक हैं और प्रतिअङ्क में चार दृश्य । श्राकार में भी यह बहुत छोटा है। भाषा साहित्यिक शुद्ध, स्वच्छ और भावोत्पादक है। लेखक ने अठारह वर्ष बाद यह नाटक लिखा है, इसलिए बहुत-सी निर्बलताए श्रा जाना स्वाभाविक है। चन्द्रगुप्त विद्यालंकार . चन्द्रगुप्त जी के दोनों नाटक--'रेवा' और 'अशोक'-प्रसाद की प्रभावपरिधि में ही श्रायंगे । प्रसाद के नाटक वस्तु की दृष्टि से ऐतिहासिक होते हुए भी सांस्कृतिक हैं। 'अशोक' और 'रेवा' दोनों ही नाटक ऐतिहासिक हैं, पर इनमें भी प्राचीन संस्कृति का वृहत् चित्र है। चन्द्रगुप्त के जीवन में गुरुकुलीन शिन्ना का सांस्कृतिक प्रभाव भी है और पंजाब की रंगीनी की भी चमक है । इसी कारण इनके दोनों नाटकों में कल्पना का रंग-बिरङ्गापन भी मिलेगा और सांस्कृतिक चित्र भी । सांस्कृतिक दृष्टि से चन्द्रगुप्त जी प्राचीन गम्भीर बौद्धकालीन वातावरण अपने 'अशोक' में उपस्थित न कर सके । इन दोनों ही नाटकों में सांस्कृतिक गाम्भीर्य, गहनता, विशालता और महानता के वे चित्र, जो 'प्रसाद' में हैं, खोजने पर निराश
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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