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________________ हिन्दी नाटककार और साहित्य की माँग की भारी उपेक्षा भी । ___ संस्कृत-साहित्य की अपनी प्रास्थाए, जीवन के प्रति अपना : दृष्टिकोण और साहित्य-सिद्धान्त भी भिन्न हैं। जिस समय संस्कृत नाटक लिखे जाते रहे, समाज की अवस्था आज की अवस्था से बिलकुल भिन्न थी । जीवन की उलझन भरी समस्याए उन दिनों इस प्रकार नहीं घेरे थीं। उस युग में साहित्य पर अानन्दवादी दर्शन का प्रभाव होना आवश्यक रहा। ऐसा नहीं कि अभाव, पीड़ा, वेदना या वियोग जीवन में था नहीं। सब-कुछ था; पर साहित्य में आने के लिए नहीं । उन दिनों साहित्य जीवन से अलग अलौकिक श्रानन्द का साधन बना हुआ था। आज की अवस्था बिलकुल भिन्न है। साहित्य की प्राचीन श्रास्थाए बदल चुकी हैं। पुराने विश्वासों की बुनियादें खोखली हो चुकी हैं। पीड़ाविह्वल पहलू भी जीवन की यथार्थता है। साहित्य जीवन की व्याख्या ही नहीं, जीवन का यथार्थ रूप बनता जा रहा है । अानन्द की कल्पित पारलौकिक अाशा का भुलावा त्यागकर कलाकार वर्तमान के आँसुओं को बहुत महत्त्व देता है तो भी आजकल हिन्दी में दुःखान्त नाटकों का अभाव ही है। स्पष्ट है कि हिन्दी-साहित्य भी पूर्ण रूपसे जीवनका साहित्य नहीं बन पाया। सुखान्त या प्रसादान्त नाटकों की हिन्दी में काफी संख्या मिल जायगी। 'प्रसाद' जी के अधिकतर नाटक तो प्रसादान्त श्रेणी में आते ही हैं, अन्य लेखकों ने भी इस प्रकार के नाटक लिखने में रुचि दिखाई । उदयशंकर भट्ट के 'विक्रमादित्य', 'मुक्तिपथ' तथा 'शक-विजय' इसी वर्ग में गिने जायंगे । 'प्रेमी' का 'विष-पान' भी दुःखान्त से अधिक प्रशान्त या प्रसादान्त ही है। सुखान्त नाटकों को संख्या तो सैकड़ों तक पहुँचती है । दुःखान्त नाटक न होने के ही समान हैं। दुःखान्त नाटक लिखने की नींव भारतेन्दु-काल में ही पड़ चुकी थी। भररतेन्दु का 'नीलदेवी' दुःखान्त ही है। 'रणधीर प्रेम मोहिनी' भी उसी युग में लिखा गया, पर वह भी खोखली नींव का पत्थर बनकर रह गया । प्रसाद-युग में एक भी दुःखान्त नाटक नहीं रचा गया । प्रसादोत्तर काल नवीन टैकनीक, नवीन विचार-धारा और स्वाधीन कला लेकर अाया, पर दु:खान्त नाटक-रचना की दृष्टि से यह युग भी भारी अभाव की पूर्ति न कर सका। इस युग में भी कोई महान् दुःखान्त नाटक किसी लेखक की प्रतिभा प्रस्तुत न कर सकी । शेक्सपियर के 'हेमलेट', 'रोमियोजूलिएट' तथा 'जुलियस सीजर' के समान क्या हमारे पास एक भी नाटक है। इन तीस वर्षों में केवल तीन-चार दुःखान्त नाटकों को हिन्दी उत्पन्न कर सकी । कलाकी
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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