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________________ २२० हिन्दी के नाटककार राजेन्द्र के ये शब्द अाधुनिक नारी पर व्यंग्य-भरी बौछार हैं, "इन चमकदार मोतियों का उपयोग कितना है रघु, तुम नहीं जानते-तुम इन्हें दूर ही से प्यार की नजरों से देख सकते हो; चाहो तो इन्हें पास बैठाकर सपनों के संसार बना सकते हो; इनकी दमक से अपनी आँखें जला सकते हो; पर जीवन के खरल में पीस इन्हें किसी काम में ला सकोगे, इसकी आशा नहीं।" अपने बीमार बच्चे को छोड़कर जाते हुए अपने पति से श्रीमती राजेन्द्र कहती हैं, "मेरी चिन्ता आप न कीजिएगा, रात को मुझे देर हो जायगी । शाम का खाना भी मैं मिसेज दयाल के यहाँ खा लूगी और बच्चे का ध्यान रखियेगा । मुझे सूचना देना न भूलियेगा। मुझे चिन्ता रहेगी।" इस पर कोई आलोचना की आवश्यकता ही नहीं। 'छठा बेटा' हास्य का अच्छा नमूना है । बसन्तलाल एक शराबी पिता है, पाँचों पुत्र उससे घृणा करते हैं, कोई भी उसे पास रखने को तैयार नहीं । पुत्रवधू अलग मुंह सिकोड़े रहती है, पर तीन लाख की लाटरी उसके नाम आने ही सब पुत्र सेवा में लग जाते हैं। कोई चरण सहलाता है, तो कोई चिलम भरता है और कोई मदिरा-पान कराता है। "बसन्तलाल-चोटी हिन्दुत्व की निशानी है, हिन्दुओं का अपना जातीय चिह्न है।.."चोटी बिजली के वेग को रोकती है। यदि कहीं मनुष्य पर बिजली गिरे तो चोटी के मार्ग से शरीर में होती हुई धरती में प्रवेश कर जाती है । देव-शायद यही कारण है कि प्राचीन काल में ब्रह्मचारी नंगे सिर रहते थे और चोटी को गाँठ देकर रखते थे कि वह खड़ी रहे। __ कैलाश-बिलकुल बिजली के कंडक्टरों की भाँति, जो ऊँची-ऊँची इमारतों पर लगा दिए जाते हैं...ताकि यदि बिजली गिरे तो इमारत सुरक्षित रहे। देव-और फिर दादा जी कहा करते थे कि प्राचीन काल के ऋषिमुनि इसी चोटी से रेडियो का काम लेते थे और बैठे-बिठाये समस्त संसार की खबरें सुन लेते थे। संजय ने हस्तिनापुर में बैठे-बैठे महाराज धृतराष्ट को कुरुक्षेत्र के युद्ध की जो खबर सुनाई वह इसी चोटी के कारण ही तो।" ___ 'छठा बेटा' का हास्य अन्त में धुंधला न्यंग्य बन गया है-प्रभावशाली भी। पात्र--चरित्र-चित्रण 'जय-पराजय' के पात्रों के अतिरिक्त अश्क के सभी पात्र सामाजिक हैंवर्तमान जीवन के हैं। 'जय-पराजय' ऐतिहासिक नाटक है, उसके पात्र भी
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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