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________________ उदयशंकर भट्ट १८३ और उनसे ही चन्दा लें। देश का काम है, दीजिये जरूर दीजिये।.... 'रामलाल रामलाल ! मूर्ख, आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य अपने को समझें । अरे भाई, जो काम तुम नहीं कर सकते, उसे पालते क्यों हो। रामलाल, हमारा मानसिक स्वास्थ्य कितना गिर गया है। ( शीशे में अपना चेहरा देखकर और मछों पर ताव देकर जरा अकड़ से ) लोकनाथ कितना मूर्ख है । कहता है दूसरी शादी करके पछता रहा हूँ। बीवी के मारे तंग है। शक्ति चाहिए । (रामलाल आता है और एक तरफ खड़ा हो जाता है । ) भार. तीयों का स्वास्थ्य बिलकुल बिगड़ चुका है। अरे कहाँ मर गया था ? मुन्शी जी नहीं आए? ___एक ही संवाद में देवनारायण का जमींदार-जीवन, उसका दूसरा विवाह और उसके उपचेतन मन में काम करने वाला अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति के प्रति अविश्वास स्पष्ट हो जाता है। 'शक-विजय' में कालकाचार्य का चरित्र भी सुन्दर चित्रित हुआ है, "जो हो गया हो जाने दूँ ? अपने तप में विघ्न पड़ने दूँ ? (कुछ देर चुप रहकर) नहीं-मैं दण्ड दूंगा । राजा को दण्ड दूंगा। सारे प्रान्त को दण्ड दूंगा। भगिनी का अपमान मेरा अपमान है । भगवान् महावीर का, सम्पूर्ण जैन-धर्म का अपमान है। इस अत्याचार का बदला लेना ही होगा। मझे चाणक्य बनना होगा (फिर कुछ चुप रहकर) नहीं, यह मेरा मार्ग नहीं है। वीतराग का निस्पृह का मार्ग नहीं है । . . . . . मैं राजा का बिगाड़ भी क्या सकता हूँ । क्यों, क्यों में क्षत्रिय नहीं हूँ ? . . . . . मैं दण्ड दूगा । मैं अन्य राजाओं की सहायता लेकर अवन्ती-नरेश को भस्म कर देगा।" अपनी बहन के प्रति किये गए अत्याचार से पीड़ित एक महात्मा की अन्तर्दशा इससे और क्या अधिक विचलित हो सकती है। यही श्राचार्य कालक अवन्ती का विनाश शकों द्वारा करा देते हैं । गंधर्वसे न मारा जाता है। सरस्वती नर-संहार को देखकर अात्म-घात कर लेती है शकराज नहपान सरस्वती को अपने विलास-भवन में लाना चाहता है, जनता शक के अत्याचार से 'त्राहि-त्राहि' पुकार उठती है तब इस निमित्त ज्ञानी की आँखें खुलती हैं, और वह पछताता है, "मैंने कितना बड़ा पाप किया। धर्म के नाम पर देश को नरक बना दिया । मैं विभीषण बन गया । मैं पापी हूँपापी हूँ । मैंने पाप किया है।" और अन्त में यह भी अपने पाप का प्रायश्चित्त श्रात्म-घात करके कर लेता है। पुरुष की अपेक्षा नारी के चरित्र का विकास भट्ट जी के नाटकों में अधिक
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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