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________________ १८२ हिन्दी के नाटककार फिर भी वह अपने भाई सोमेश्वर के कारनामों पर दुखी तो होगा ही, "सोमेश्वर भाई, तुमने भाई के नाते पर कुठाराघात करके दुष्ट चेंगी का साथ दिया । भाई का भाई से भयंकर युद्ध, भ्रातृ-द्रोह, क्या इस विद्रोह-वह्नि में में स्वयं नहीं जल रहा हूँ।..... भाग्य ने मुझे बचा क्यों लिया । कहीं शत्रुओं के षड्यन्त्र में मै पिस क्यों न गया ।" इन शब्दों में विक्रम के हृदय में उठने वाले तूफान के भाव-संघर्ष का अच्छा आभास मिलता है। 'दाहर' में कासिम के हृदय और मस्तिष्क का भी अच्छा चित्र उपस्थित किया गया है। __गजब की सुन्दरता है। अगर सूरज सूरज है तो परमाल चाँद है। ..... आः कहीं ये 'नहीं, यह खलीफा का उपहार है। लेकिन यह क्या, मेरे इस सुनसान डेरे में हँसी की आवाज कहाँ से आ रही है। कौन हँस रहा है ? कौन है ? है ! यह तो दाहर की हँसी है । यह क्या ! चारों ओर दाहर के सिर.....'याकूब ! याकूब !" 'मुक्ति-पथ' में सिद्धार्थ के चरित्र में तो केवल एक ही बात-करुणा-का विकास है । हृदय की अधिक हलचल उसमें नहीं है, पर शुद्धोदन के चरित्र में पिता की परेशानी, अाशंका, पुत्र-मोड, सभी कुछ बड़े कौशल से दिखाया गया है,। वह कहता है, "मेरी आँखों का प्रकाश मेरे हृदय का बल, यह सिद्धार्थ है । मुझे उसके सामने न्याय-अन्याय, धर्म-अधर्म, ज्ञान-विज्ञान कुछ भी नहीं सूझता। मेरे जीवन का एक-मात्र सूत्र यह युवराज है । उस दिन का स्वप्न.. नहीं-नहीं कहूँगा।" और सिद्धार्थ के गृह-त्याग के बाद, "मुझे कुछ नहीं सूझता में अंधा हो गया हूँ गौतमी! ( गोपा राहुल को गोद में लिये बैठी है ) ठीक है ! आजीवन रोने के लिए इसका जीना आवश्यक है । रो, रो, तू भी रो, मैं भी रोऊँ । संसार रोवे । आनो इतना रोवें कि राजकुमार तप करते हुए बहकर हमारे पास आ जायं।" ____ 'कमला' में देवनारायण का चरित्र अत्यन्त स्वाभाविक और कौशल से चित्रित किया गया है । भट्टजी ने उसका चरित्र-चित्रण करने में अभिनय, भाषा-शैली, अनुभाव-सभी से काम लिया है। पर्दा उठते ही देवनारायण सामने आता है। "देवनारायण -(कमरे में चारों ओर घूमकर धम्म से काउच पर बैठता हुआ) लोगों ने समझ रखा है कि जितना दुहा जाय, दुहो, इन जमींदारों को। जब देखा, तब चन्दा । चन्दा न हुआ, एक आफत हो गई। कांग्रेस का चन्दा, समाज का चन्दा, स्कूल का चन्दा । जमींदारों का भी नाश करने की ये सोचें
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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