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________________ आलोक गए नृत्यों से होता है। डायोनिसस का उत्सव शोत की मृत्यु और बसन्तारम्भ के उपलक्ष में मनाया जाता था। भारत में भी इस प्रकार के नृत्य-गानप्रधान स्वाँगों ने नाटक के विकास में सहयोग अवश्य दिया होगा। मानव ने जंगली असभ्य अवस्था में पशुओं के चेहरे लगाकर नृत्य-गान प्रारम्भ किए थे । धीरे-धीरे इन पशुओं ने-विशेष शक्ति के प्रतीक होने के कारण -देवताओं का रूप धारण कर लिया। डायोनिसस, नृसिंह, गणेश, बाराह में पशु और मानव दोनों मिल जाते हैं। भारत में प्रचलित नृसिंहावतार, बाराह-लीला आदि ने भी नाटक के आदि रूप को गति दी होगी । यूनानी दुःखान्त नाटकों का विकास डायोनिसस के गीतों से हुआ। यूतान में एस्किलस, सोफोक्लीज, यूरोपिडीस प्रसिद्ध दुःखान्त नाटक-लेखक हुए । ___ऋतु-पर्यों पर किये गए उत्सवों और स्वाँगों में भी नाटक का आदि रूप मिलता है। चीन, यूनान, भारत, मैक्सिको सभी देशों में बसन्त ऋतु में अानन्दोत्सव मनाए जाते हैं। यह समय फसलों के पकने का होता है। प्रकृति में भी उल्लास आनन्द उमड़ता है। चीन में नाटकों का प्रारम्भ और विकास बसन्तोत्सवों के उपलक्ष में किये गए हास्य-प्रधान स्वाँगों से हुआ है। भारत में भी होली के स्वाँग अपने हास्य और अश्लील मनोविनोद के लिए विख्यात हैं । अश्लील स्वाँगों में यूनान में हास्य नाटक उदय हुए। इनमें राजकीय, पौराणिक और ऐतिहासिक पुरुषों की खिल्ली उड़ाई जाती है और अश्लील अभिनय रहता है। यूनानी नाटक के विकास में जितना कार्य इन हास्य-नाटकों ने किया उतना दुःखान्त नाटकों (डायोनिस के गीतों) ने नहीं । हास्य-नाटकों में अभिनय, चरित्र-चित्रण, कथावस्तु, रस, संवाद आदि तत्व दुःखान्त नाटकोंसे अधिक स्वस्थ और नाटकोचित होते थे। इनमें अश्लीलता बहुत रहती थी। प्राकऐतिहासिक कालोन लेखक मोदिस, मछपन, टॉलिनस ने इनकी अश्लीलता कम की । मिनेण्डर ने तो यूनानी नाट्य-कला में युगान्तर उपस्थित कर दिया। उसने अभिनय को स्वाभाविकता की ओर बढ़ाया-वह नाटक को वास्तविक जीवन के निकट लाया। धार्मिक उत्सवों, ऋतु-पर्यों के अवसरों पर किये गए नृत्य-गीत से नाटक विकास-पथ-पर प्रेरित हुआ। महाराष्ट्र में आज भी पौराणिक धार्मिक नाटकों का रूप देखने को मिल जाता है। इसे 'ललित' कहते हैं । शृङ्गार-हास्यप्रधान लौकिक प्राचीन नाटक भी वहाँ प्रचलित हैं। ये 'तमाशा' कहलाते हैं । विदर्भ में यही हास्य-शृङ्गार प्रधान लौकिक नाटक 'डिंढार' कहलाता है। नामिलनाड में भी कामन पण्डिगै' नाटक का प्राचीन रूप है । इसका विषय
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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