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________________ लक्ष्मीनारायण मिश्र कर सके, सभी में बेबस परिस्थिति की स्वीकृति या आत्म-समर्पण ही है। 'सिन्दूर की होली' में भी यदि बुद्धिवाद के द्वारा मनोजशंकर यह जानते हुए भी कि मुरारीलाल ने उसके बाप का वध किया, चन्द्रकला को स्वीकार करता तो शायद समस्या के सुलझाव का दिव्य उदाहरण होता। __संवादों में समस्याओं की विवेचना है, उनके हल करने के लिए तर्क दिये गए हैं। पर न तो शरत के 'शेष प्रश्न' को कमल-जैसे बुद्धिवादी पात्र ही मिश्र जी निर्मित कर सके और न तर्क ही ऐसे दे सके कि पाठक अभिभूत हो जायं । न तो इनके पात्रों में, न घटनाओं में और बुद्धिवाद में ही 'महान्' के दर्शन होते हैं। महान् व्यक्तित्व के बिना बुद्धिवाद इच्छित प्रभाव डालने में असमर्थ रहेगा। ऐसे स्थल अधिक नहीं, जहाँ पाठक का हृदय और मस्तिष्क मिश्रजी के बुद्धिवाद के चरणों में विश्वास के साथ आत्म-समर्पण कर दे। पात्रों का मानसिक स्तर बहत ऊचा नहीं हो पाया। न ही उनकी वाणी में वह चमक आई और न इतनी शक्ति कि हमें उनकी बात माननी ही पड़े। पर मिश्रजी का प्रयत्न अत्यन्त प्रशंसनीय कहा जायगा, उन्होंने बुद्धिवाद का द्वार तो हिन्दी में खोला-नई दिशा में कदम तो बढ़ाया और सफलता के साथ । समाज और समस्या सामाजिक सम्पर्क, सभ्यता के विकास, पश्चिमीय राष्ट्रों के राजनीतिक प्रभुत्व और व्यक्तिगत जीवन में अनेक उलझनें उत्पन्न होने के कारण विश्व के मानव के सामने अनेक समस्याएं उपस्थित होती चली जा रही हैं। मानव-जीवन का जब से इस धरती पर उदय हुआ, उसके सामने नित्य नई समस्याए पाती रही हैं और वह उनको सुलझाने का प्रयत्न करता रहा है । पर श्राज जिस रूप में ये समस्याएं मानव को परेशान कर रही हैं, उल रूप में पहले कभी नहीं करती रहीं । मिश्रजी ने अपने नाटकों द्वारा इन समस्याओं का हल उपस्थित करने का प्रशंसनीय प्रयत्न किया है । 'संन्यासी,' 'राक्षस का मन्दिर', 'मुक्ति का रहस्य', 'राजयोग', 'पाधी रात', 'सिन्दूर की होली'सभी नाटकों में किसी-न-किसी समस्या का सुलझाव दिया गया है। रचना-क्रम से मिश्र जी ज्यों-ज्यों आगे बढ़े हैं, समस्या का स्वरूप राजनीतिक से सामाजिक और सामाजिक से वैयक्तिक होता गया है। व्यक्ति ही वास्तव में चिरन्तन सत्य है और व्यक्ति में है नारी विशेष रूप से । 'संन्यासी' में भी यद्यपि काम-समस्या को लिया गया है, पर उस में
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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