SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हरिकृष्ण ‘प्रेमी' प्रात्म-त्याग और अहिंसात्मक नेतृत्व के कारण रायसाहब खजांचीराम का हृदय परिवर्तित हो जाता है। साथ ही प्रकाश द्वारा पिता की जान लेने का प्रयत्न भी उसके दिमाग को बदलने में सहायक होता है। मजूरों की सभी मांगें मान ली जाती हैं। मालिक-मजूर में मेल हो जाता है। खचांचीराम कहता है, "अाज मैं सब-कुछ दे डालना चाहता हूँ। लक्ष्मण, यह तुम लोगों का ही तो रुपया है, जो हमने अपनी तिजौरियों में कैद कर रखा है। लक्ष्मी को हमने कैद करना चाहा लेकिन वह हमारी कैद में खुश नहीं है। वह मुक्त होना चाहती है। जब तक वह मुक्त न होगी, संसार में मार-काट, हिंसा बनी रहेगी.....'मोहन बाबू ने मुझे नया जन्म दिया है।" ___ आर्थिक विषमता ही ऊँच-नीच की बुनियाद है। विषमता दूर हुई तो मानव सभी बराबर । यह बात लेखक ने मोहन और मालती ( खजांचीराम की पुत्री ) के विवाह से इङ्गित कर दी है। वर्तमान का चित्रण ___ 'छाया' और 'बन्धन' में तो वर्तमान जीवन के सामाजिक और वैयक्तिक चित्र हैं ही, उनके अन्य ऐतिहासिक नाटकों में भी वर्तमान बोल रहा है। पुरातन और नवीन का स्वस्थ संगम, जिस रचना में नहीं होगा, भूत तथा वर्तमान का सामंजस्य जिसमें न होगा, वह हमारे भविष्य का भी निर्माण नहीं कर सकती, यह निर्विवाद है। प्रेमीजी के नाटकों की प्रेरणा है वर्तमान । वर्तमान का निर्माण ही उनका उद्देश्य है, वर्तमान साध्य है, भूत साधन । उनमें वर्तमान अनेक रूपों में सजग और सक्रिय दिखाई देता है। राष्ट्रीयता-देश-भक्ति उनके सभी नाटकों में व्याप्त है। सामन्ती युग यद्यपि समस्त भारतीय भावना का युग नहीं; फिर भी अपनी जन्मभूमि, छोटा-सा देश भी प्रतीक रूप में समस्त भारत की भक्ति की प्रेरणा बनकर आया है। हिन्दू-मुसलिम-एकता भी वर्तमान राष्ट्रीय पुकार का ही सजग उत्तर है। साम्प्रदायिक सहिष्णुना गांधीजी के जीवन की विशेष साधना रही है। उसी साधना को प्रेमीजी ने अपने नाटकों में सिद्धि के रूप में उपस्थित कर दिया है। कर्मवती का हुमायूँ को राखी भेजना और उसे भाई बनाना और हुमायूँ का चित्तौड़ की रक्षा के लिए पाना ही दोनों सम्प्रदायों की एकता की सफलता का द्योतक है। 'रक्षा-बन्धन' में साम्प्रदायिक एकता का स्वप्न साकार बन गया है। 'स्वप्न-भंग', 'शिवा-साधना', 'रक्षा-बन्धन' और 'मित्र' आदि सभी नाटकों में साम्प्रदायिकता के भाव हैं। यह राष्ट्रीय आन्दोलन का ही प्रभाव है कि 'शिवा साधना' में स्थान-स्थान
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy