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________________ १३६ हिन्दी के नाटककार द्वन्द्व और भाव संघर्ष भी समान और उचित अनुपात में मिलता है । पर वर्तमान जीवन से सम्बन्ध रखने वाले नाटकों के चरित्र-निर्माण में "यक्ति afrase' का स्वरूप स्पष्ट है । 'बन्धन' में प्रकाश का चरित्र इसका उदाहरण कहा जा सकता है । वह शराबी है - शिकारी है; पर उसके हृदय मानवता का सागर उमड़ता हुआ दिखाई देता है । लक्ष्मण को दस रुपये दे जाता है, उसे अपने बाप की तिजौरी की चाबी दे देता है कि वहाँ से रुपया चुरा लावे । लक्ष्मण जब पिस्तौल दागकर भाग जाता है और रायबहादुर खजान्चीराम घायल होकर गिरता है तो वह उस आक्रमण का अपराध अपने ऊपर ले लेता है । प्रकाश का चरित्र विस्मयजनक उलझन और अभूतपूर्व विलक्षणता से भरा है । 'प्रेमी' ने प्रकाश के निर्माण में प्रशंसनीय कला का परिचय दिया है । इसमें सबसे बड़ी विलक्षण मनोवैज्ञानिक बात प्रेमी ने रखी है। अधिकतर लोग अपने कष्टों, अपराधों या असफलताओं को भूलने के लिए शराब पीना आरम्भ कर देते हैं, पर प्रकाश अपनी मानवता को दबाने के लिए - मानव-प्रेम, दया, दाक्षिण्य, करुणा आदि को भूलने के लिए शराब पीने लगता है । यदि वह इन सब भावनाओं को जागृत रखता है तो अपने पिता के शोषण का विरोध उसे करना पड़ता है । होश में रहकर विरोध नहीं करता तो मानवता से गिरता है - स्वयं ही अपराधी बनता है । विरोध करता है तो पिता के मार्ग मे काँटा बनता है । इसीलिए शराब और शिकार का नशा उसने अपने सिर चढ़ाया । पर अन्त में मानवता की विजय हुई | उसे शराब छोड़नी पड़ी। पिता के घातक का रूप भी धारण करना पड़ा। प्रकाश हिन्दी के नाटकों का दिव्य और विलक्षण चरित्र है । 'छाया' भी वर्तमान जीवन का चित्र हैं । उसके सभी चरित्र वर्तमान समाज के जीवित प्राणी हैं। छाया, माया, रजनी, प्रकाश श्रादि सभी यथार्थ - वादी चरित्र हैं । माया रात को नसीब बनकर अपने रूप का बाजार लगाती है, पर उसके हृदय में मानवीय गुणों की बहुत बड़ी निधि जमा है । छाया एक गौरवशालिनी श्रास्थावान पत्नी है, जो अपने पति प्रकाश की मानसिक दुर्बलता का भी मान करती है । रजनी अनेकों लांछनों से युक्त होते हुए भी एक ज्योति है । 'छाया' और 'बन्धन' दोनों नाटकों में चरित्रचित्रण में प्रेमी जी ने 'व्यक्ति - वैचित्र्य' के यूरोपीय सिद्धान्त को सफलतापूर्वक साकार रूप में उपस्थित कर दिया है ।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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