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________________ हरिकृष्ण 'प्रेमी १३५ करने के लिए है, संसार को स्नेह के निर्मल झरने में स्नान कराने के लिए है। मै अपना स्वाभाविक धर्म छोड़कर हिंसा का खेल खेलने चली हूँ। कोई दिल में बार-बार कहता है, 'रोशनआरा जरा सोच ! आगे कदम बढाने के पहले उसके परिणामों पर विचार कर'।" नारी-पात्रों में रक्षा-बन्धन' की श्यामा एक दिन्य चरित्र है। इसका चित्रण करने में प्रेमी जी ने अत्यन्त कौशल प्रदर्शित किया है। श्यामा मेवाड़ी वंशाभिमान की शिकार, सामंती न्याय के पैरों तले कुचली हुई अबला और समाज-बहिष्कृत एक न्यथा-विह्वल नारी है। श्यामा के ये शब्द उसके रोषभरे नारीत्व को प्रगट करते हैं, "देश-भक्ति के अंध उन्माद ने, न्याय के निष्ठुर अभिमान ने, एक दिल की हरी-भरी बस्ती को जलता हुआ मरुप्रदेश बना दिया । इच्छा होती है, चोट खाई हुई नागिन की भाँति फुफकारकर सम्पूर्ण मेवाड़ को डस लू।" श्यामा के हृदय की घृणा, रोष और क्रोध सामने आई हुई चारणी पर भी बरस पड़ते हैं और वह कहती है, "चारणी तुम मेरी आँखों के सामने से हट जाओ।" और वह फिर मेवाड़ के दम्भ और हृदयहीन वीरता के अभिमान पर व्यंग्य करती है। पर वह अपने हृदय का रोष दबाकर अपने पुत्र को मेवाड़ के लिए युद्ध करने की प्रेरणा देती है। सदा अपने को एकान्त स्वाभिमान के साथ मेवाड़ के राज-महलों से अलग रखती है। उसके चरित्र का यह गुण स्पर्धा के योग्य है। वह अपने स्वाभिमान को जवाहरबाई पर प्रगट करती है, “चलो बेटा, मेवाड़ के महलों के गहों पर नहीं, मेवाड़ की धूल पर ही तुम्हारा वास्तविक आसन है ।" श्थामा के चरित्र में तीखा व्यंग्य व्यक्तित्व का अहं, रोष, घृणा, निष्काम भक्त का-सा अभिमान सजग है। दारा, शाहजहाँ और नादिरा दुविधापूर्ण स्थिति, मानसिक हलचल, आशानिराशा, अन्धकार और प्रकाश के यथार्थ मूर्तिमान रूप है । 'छाया' में भी प्रेमी' जी ने चरित्र-चित्रण का अच्छा कौशल दिखाया है। कई नाटकों में समानान्तर चरित्र भी दृष्टिगोचर होते हैं। रक्षा-धन्धन' की चारणी और 'शिवासाधना' की अकाबाई एक ही हैं। गरु रामदास और शाह शेख श्रौलिया भी समान चरित्र हैं । सुजान और विक्रमादित्य में भी विशेष अन्तर नजर नहीं पाता। ऐतिहासिक नाटकों के चरित्रों में रंग भरते हुए प्रेमी'जी ने भारतीय रससिद्धान्त का बहुत ध्यान रखा है। 'साधारणीकरण' के अनुसार ही अधिकतर चरित्रों का निर्माण किया है, यद्यपि जीवन के उत्थान-पतन, मानस का
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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