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________________ हरिकृष्ण 'प्रेमी' १३३ नायक तथा खलनायक सभी एक विशेष वर्ग के पात्र हैं। शठनायक अधिकतर उन्हीं सब गुणों से युक्त हैं, जो भारतीय साहित्य-शास्त्र में माने गए हैं । शठ नायिकाओं के विषय में भी यही समझना चाहिए। यह बात केवल नायक और प्रतिनायक के विषय में ही नहीं; सभी सद् और असद् पात्रों के विषय में लागू होती है । पात्र केवल विशेष वर्ग के होने के कारण मानवीय मनोवैज्ञानिक अन्तद्वन्द्व से शून्य हैं। सघर्ष की तीव्रता और कार्य की व्यस्तता में अन्तद्वन्द्व को समय भी नहीं मिलता, यह ठीक है, तो भी मानवीय हृदय में स्पन्दन तो होना आवश्यक है। 'प्रेमी' जी ने अवसर मिलने पर विभिन्न पात्रों के हृदय की धड़कन को भी पाठक के सामने रखने का प्रयत्न किया है: ___ "औरंगजेब, तू किधर जा रहा है । अजाब के काले समुन्दर में जिन्दगी को नाव बह पड़ी है। जहाँपारा तूने क्या कहा-दिल्ली की सल्तनत में भी आग लगा हूँ, यह भी शाहजहाँ की निशानी है। सच है, मेरे अज़ाब दरअसल इस सल्तनत को ले डूबेंगे।" हत्याओं और निर्भयताओं से खेलने वाला पाषाण-हृदय औरंगजेब भी 'शिवा-साधना' में अपने कर्मों पर समय मिलने पर सोचता है; पर जो पग विनाश की तरफ बढ़ चला, वह रुका नहीं। और जो शिवाजी, मौत से खेलता था, काल की कराल मूर्ति देखकर मुसकाता था, भयंकर-से-भयंकर परिस्थिति का कसकर आलिंगन करता था, वही जीजाबाई की मृत्यु पर कितना हताश हो गया : "अाज माँ के स्वर्गवास को पूरे चार मास हो गए। फिर भी मेरे हृदय का घाव जरा भी नहीं भरा। मुझे राज्य जंजाल जान पड़ता है और ऐश्वर्य अभिशाप । पुझसे अब यह सहन नहीं होगा।" चरित्र-चित्रण की दृष्टि से 'रक्षा-बन्धन' का विक्रमादित्य और 'उद्धार' का सुजानसिंह प्रेमी के पुरुष चरित्र-चित्रण के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं, इन दोनों में मानवीय कमियाँ हैं और मानवीय दिव्य गुण भी हैं। दोनों का चरित्र प्रायः समान-सा है। दोनों ही नूपुरों की रुनुन-झनुन और प्यालियों में डूबे सामने आते हैं। दोनों ही जन-सम्मति के सामने सिर झुकाकर राज-मुकुट त्याग देते हैं और दोनों ही आदर्श वीरता, त्याग, देश-भक्ति, शौर्य और निर्भयता का परिचय देते हैं, "वे गोरा-बादल की आत्माएं मुझे शाप दे रही है । स्वर्ग में देवी पद्मिनी हँस रही है, उनकी व्यंगमयी मुसकान मानो कह रही है, इससे स्त्रियां ही अच्छी । अभिशाप, ग्लानि, घृणा और अपयश के बोझ से दबा हुअा जीवन में कब तक हो सकूँगा ? मै मेवाड़ का महाराणा था-अब
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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