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________________ १२६ हिन्दी के नाटककार नाटक में उपस्थित किये गए हैं। 'शिवा साधना' की अकाबाई 'रक्षा बन्धन' की चारणी ही है । 'मित्र' में ताण्डवी का भी यही स्थान है । हाँ, वह अधिक सशक्त होकर अवश्य आई है । 'मित्र' का महाकाल भी कल्पित पात्र है । 'शिवा - साधना' में उनकी कल्पना सम्भवतः इतिहास का अधिकार छीनने के लिए मचल पड़ी है। इसमें 'प्रेमी' ने काल्पनिक घटनाओं का भी निर्माण कर लिया है। अफजल खाँ अपनी पत्नियों का वध करके शिवाजी से भेंट करने गया, यह घटना हमने इतिहास में नहीं पढ़ी। अफजलखाँ अपने समय का बहुत बड़ा वीर और तलवार का खिलाड़ी था । उसने अनेक युद्ध भी जीते थे; पर वह इतना जालिम और मूर्ख भी था यह लेखक की कल्पना ही जान पड़ती है । शिवाजी के पिता शाहजी का बीजापुर के बादशाह द्वारा दीवार में चुनवाया जाना भी ऐसी ही कल्पित घटना है । शिवाजी के प्रति जेबुन्निसा का प्रेम पराजित मनोवृत्ति की तुष्टि मात्र दी | हमारे विचार में • ऐसी दुरूह कल्पनाएं ऐतिहासिक नाटकों में उचित नहीं वीणा और प्रकाश भी निर्मित पात्र हैं, पर उनसे नाटक में है । वे अनैतिहासिक होते हुए भी नाटकीय महत्त्व को बढ़ाते ही हैं, घटाते नहीं । 1 । 'स्वप्न भंग' के वृद्धि अवश्य हुई देश-प्रेम का स्वरूप 'स्वप्न भंग' की भूमिका में प्रेमी जी लिखते हैं: "मेने अपने नाटकों द्वारा राष्ट्रीय एकता के भाव पैदा करने का यत्न किया है। मेरे इन लघु यत्नों को राष्ट्रीय यज्ञ में क्या स्थान मिलेगा, यह मैं नहीं जानता ।" प्रेमी जी के नाटकों में देश-प्रेम सर्वोपरि तत्त्व । सभी नाटकों में देशप्रेम सब भावों से अधिक सजग और गतिशील | यह देश-प्रेम सार्वदेशिक प्रेम तो सच्चे अर्थों नहीं कहा जा सकता, पर उसका प्रतीक यह अवश्य है । हर एक नाटक की श्रात्मा में देश-प्रेम की धारा बलिदान के सागर की ओर बढ़ती संकल्प-जैसी सुदृढ़ गति से दौड़ती चली जा रही है । 'प्रेमी' के नाटकों की पुकार है, श्राततायियों - श्राक्रमणकारियों से अपनी जन्म भूमि की प्राण देकर भी रक्षा करो। लगता है, जैसे अपनी जन्म-धरा के चारों ओर शत्रु श्रों की सेनाएं हिंसक जीभ लपलपाती हुई टिड्डी दल के समान घिर आई हैं-- शान्ति और सुख के छोटे-से धरा - खण्ड को निगलने के लिए लोलुप तूफान बढ़ा चला था रहा है और मचान पर चढ़कर जैसे खतरे का ढोल बजाकर सबको एकत्र किया जा रहा है I
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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