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________________ १२४ हिन्दी के नाटककार और जीवन की आकुल सजगता उसकी प्रेरणा की पृष्ठभूमि है। इतिहास और कल्पना 'स्वर्ण-विहान', 'छाया' और 'बन्धन' को छोड़ कर प्रेमी जी के सभी नाटक ऐतिहासिक हैं। सभी नाटकों की कथावस्तु भारतीय मुस्लिम-काल के इतिहास पर आधारित है। ऐतिहासिक काल-क्रम की दृष्टि से लें तो 'मित्र', 'उद्धार', 'रक्षा-बन्धन', 'प्रतिशोध', 'स्वप्न-भंग', तथा शिवा-साधना' की माला बनेगी। कल्पना का उपयोग करते हुए भी प्रेमीजी ने अपने नाटकों में इतिहास की मर्यादा की पूरी रक्षा की है। कलाकार के अधिकार के उपभोग के अहं में आकर उन्होंने इतिहास का न तो गला ही दबाया है, और न कल्पना के आतंक को ही इतिहास पर छाने दिया है। इतिहास के सत्य की रक्षा करते हुए प्रेमी जी ने नवीन जीवन-निर्माण का मार्ग दिखाया है और अपनी बात सफलता पूर्वक कह दी है। यदि हम केवल विदेशियों द्वारा स्वार्थ-प्रेरित मनगढन्त इतिहास की गवाही में प्रेमी जी के नाटकों की परीक्षा करेंगे तो भारी भूल होगी। इतिहास केवल वह ही नहीं है, इतिहास राजस्थान की जन-वाणी में भी अपने यथार्थ रूप में बोल रहा है । जन-वाणी और ऐतिहासिक पाण्डित्य दोनों के आधार पर प्रेमी जी ने अपने नाटकों के लिए कथा-सामग्री और पात्र चुने हैं । 'रक्षा-बन्धन' की कथा-चित्तौड़ पर बहादुरशाह का श्राक्रमण इतिहास की आँखों देखी घटना है। कर्मवती द्वारा हुमायूँ को राखी भेजना और उसका चित्तौड़ की रक्षा के लिए पहुँचना 'टाड के राजस्थान' में भी अत्यन्त सम्मान के साथ वर्णित है । कर्मवती, जवाहरबाई, श्यामा, उदयसिंह, हुमायू, बहादुर शाह, विक्रमादित्य श्रादि सभी इतिहास-प्रसिद्ध पात्र हैं। चित्तौड़ के जौहर की कहानी जन-मन में श्राज भी जीवित है। ____ 'शिवा-साधना' की सभी प्रमुख घटनाएं इतिहास के प्रकाश में चमकती हैं । अफजलखाँ का शिवाजी के द्वारा मारा जाना, पूना पर शिवाजी का अाक्रमण-शाइस्ताखाँ का खिड़की के रास्ते से भागना, जयसिंह द्वारा शिवाजी को दिल्ली लाया जाना, और मिठाई के टोकरे में बैठकर शिवाजी का बचकर निकल जाना—सभी घटनाएं इतिहास के छोटे-प्ले-छोटे विद्यार्थी की भी बाल-सखात्रों के समान परिचित हैं। सिंहगढ़ की विजय के समय तानाजी मालसुरे का बलिदान आज भी महाराष्ट्र में कहावत बन गया है-"सिंह गेला, गढ़ अाला ।" समर्थ गुरु रामदास और माता जीजाबाई के चरित्र महा
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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