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________________ गोविन्दवल्लभ पन्त ११७ लालटेन भी टॅगी है । एक गधा अाकर लट्ठ से कमर रगड़ता है। लालटेन बुझ जाती है। माधव और प्रतिमा मोटर पर चढ़े आते हैं और मोटर लट्ठ को तोडकर पुल के नीचे नदी में गिर जाती है-यह दृश्य इतना विस्तृत और विशाल है कि इसका निर्माण असम्भव है । साथ ही रंगमंच पर सड़कनदी पुल दिखाना और मोटर दौड़ते आना और उसका नदी में गिरना क्या किसी भी अवस्था में दिखाया जा सकता है ? इन एक दो त्रुटियों को छोड़कर शेष दृश्य-विधान अभिनयोपयुक्त है। ____अाकस्मिकता भी अभिनय के लिए एक अनिवार्य तत्त्व है। अकस्मात् या अप्रत्याशित किसी घटना का होना अभिनय में जान डाल देता है । दर्शकों में एक विलक्षण कौतूहल की सृष्टि करता है। पन्त जी के नाटकों में आकस्मिकता के प्रचुर मात्रा में दर्शन होते हैं। 'वरमाला' के प्रथम अङ्क का दूसरा दृश्य दर्शकों को आश्चर्यचकित कर देता है, जब अवीक्षित सहसा वैशालिनी का हरण करके ले जाता है। इसी अङ्क के तीसरे दृश्य में नेपथ्य में अवीक्षित का नाके द्वारा पकड़ा जाना और वैशालिनी द्वारा शीघ्रता से उसका वध करना भी नाटकीकता से पूर्ण घटना है । इसी दृश्य में आगे शत्र - सेना का आक्रमण भी सामाजिकों के हृदय की धड़कन को बढ़ा देता है। तीसरे अङ्क का तीसरा दृश्य भी कौतूहल, आकस्मिकता, अकस्मात् और अनाशंकितता का प्रौढ़ उदाहरण है। वैशालिनी को एक राक्षस पकड़ना चाहता है । सामाजिक धड़कते हृदय से यह सब देखते हैं। वह आगे बढ़ता जाता है, दर्शकों को हृदय धड़कन भी बढ़ती जाती है। और ज्यों ही वह वैशालिनी को आलिंगन करने के लिए आगे बढ़ता है, अवीक्षित का तीर उसका काम तमाम कर देता है। निश्चय ही इस समय दर्शक उल्लास से उछल पड़ते हैं और उनके आनन्द के सागर में बाढ़ श्रा जाती है। _ 'राज-मुकुट' का तो प्रथम दृश्य ही नाटकीयता से पूर्ण है। पर्दा खुलते ही प्रथम दृश्य कार्य-व्यापार और अप्रत्याशित घटनाओं से पूर्ण है। विक्रम मदिरा-पान मे मस्त है। नेपथ्य में र रक्षा की पुकार होती है। एक दुःखिनी का प्रवेश, उसे धक्के देकर बाहर निकालना और प्रजाजनों का दरबार में घुस आना। तलवारें निकल पाती हैं । जयसिंह का पाकर अपने पिता की रक्षा के लिए विक्रम पर वार करना और शीघ्रता से बनवीर का पाकर उसका वार अपनी तलवार पर रोकना-पूरा दृश्य रोमांचकारी है। दर्शक सहमी-सहमी धड़कन से देखते रहते हैं। दूसरे अंक के तीसरे दृश्य का अन्तिम भाग भी रोमांच कर देने वाला है। इसी अंक का पांचवाँ
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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