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________________ गोविन्दवल्लभ पन्त १११ दौर फिर जोर पकड़ता हुआ दिखाई देता है। यद्यपि इसमें ऐसे स्वगत नहीं हैं कि प्रतिपक्षी के सम्मुख ही स्वगत के द्वारा प्रकट न करने वाले विचार प्रकट कर दिये जायं, जैसे 'वरमाला' और राजमुकुट' में । तो भी स्वगतों की कम भरमार इसमें नहीं। प्रथम अङ्क का प्रथम दृश्य पद्मावती, दूसरा मागंधिनी, दूसरे अङ्क का पहला दृश्य उदयन, दूसरा सम्पूर्ण दृश्य पद्मावती, तीसरे अङ्क का पहला दृश्य मागंधिनी, दूसरा पद्मावती, तीसरा उदयन तथा चौथा पद्मावती के स्वगत-भाषण से प्रारम्भ होता है। इस नाटक में कुल ६ दृश्य हैं, जिनमें ८ दृश्यों का प्रारम्भ स्वगत से ही होता है। यह नाटक पन्त की काफी प्रौढ़ अवस्था का है, फिर भी स्वगत की अस्वाभाविकता उनकी समझ में न आ सकी। ___ कार्य-व्यापार और नाटकीय आकस्मिकता उत्पन्न करके पंतजी दर्शकों को रोमांचित करने की विलक्षण शक्ति रखते हैं। नाटकों की कथा-वस्तु सीधी-सादी सरल गति से चलते हुए भी अत्यन्त तीव्र होती है। इनके कथानकों में उलझन भरी घटनाएं नहीं होती, तो भी विस्मयजनक अप्रत्याशित घटनाए' उत्पन्न करके पंतजी बहुत ही गहरा प्रभाव दर्शकों या पाठकों पर डालते हैं। नाटकीय घटनाओं की परख और पकड़ करने में पंतजी ने अपने प्रत्येक नाटक में प्रशंसनीय प्रतिभा का परिचय दिया है। ___'वरमाला' के प्रथम अंक का दूसरा दृश्य दर्शकों को आश्चर्य में डाल देता है । सहसा अवोक्षित द्वारा वैशालिनी का हरण । तीसरा दृश्य तो कार्य-व्यापार कौतूहल और आकस्मिकता में अभूतभूर्व है। नदी-तट पर नक्र द्वारा अवीक्षित को निगलने की चेष्टा और क्षिप्रता से वैशालिनी द्वारा उसका वध नाटकीय रोमांच की सृष्टि करता है। अवीक्षित के लौटने पर कुछ वार्तालाप के बाद ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि वैशालिनी अपनी छाती में कटार भोंकने को उद्यत होती है, अवीक्षित रोकने के लिए आगे बढ़ता है और अचानक अवीक्षित को एक तीर अाकर लगता है । इसके बाद ही क्षिप्रता से कई तीर अवीक्षित को लगते हैं। वह घायल होकर गिर जाता है। वह सस्स्त दृश्य विस्मय, भय, अाशा-निराशा से सामाजिकों का हृदय भर देता है । यह समस्त दृश्य कार्य-व्यापार की दृष्टि से अद्वितीय है। . ___ तीसरे अंक का तीसरा दृश्य भी इसी प्रकार की रोमांचकारी घटनावली से पूर्ण है । राक्षस का वैशालिनी की ओर बढ़ना और ठीक अवसर पर अवीक्षित के तीर से पाहत होकर धराशायी होना भयाकुल धड़कन और सफलता की शान्ति से पूर्ण है।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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