SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी के नाटककार सज्जन पड़ें न कभी क्लेश में, निर्मल औ' निर्भय होवे मन ।' इस भरत-वाक्य से नाटक समाप्त होता है। संस्कृत-नाटकों के समान ही इनके नाटक स्वगत-भाषणों से भरपूर हैं। 'वरमाला' के प्रथम अंक के प्रथम दृश्य में वैशालिनी गाती हुई आती है और लगभग डेढ़ पृष्ठ का स्वगत-भाषण कर डालती है। तीसरे दृश्य में अवीक्षित के नदी नट पर जाने पर वह स्वगत-भाषण करती है। तीसरे अंक का प्रथम दृश्य भी वैशालिनी के गाने और स्वगत से प्रारम्भ होता है। इस स्वगत का भद्दा रूप तो 'वरमाला' के तीसरे अंक के पृष्ठ ११ में मिलता है। वैशालिनी झाड़ी में छिपी है और अवीक्षित विस्मय से इधर-उधर देख रहा है, उसे खोजने के लिए। वैशालिनी (स्वगत]-वही हैं, यह तो वही है । क्या अाज तपस्या सफल अवीक्षित-कोई उत्तर नहीं । कौन हो तुम ? यदि इस लोक की नहीं हो, मेरी भाषा नहीं समझती, तो मेरे सकेत को समझो, और अपने संकेत से मुझे समझायो कि तुम कौन हो ? प्रकट होनो देवी ! वैशालिनी [ स्वगत ]-नहीं अभी न प्रकट होऊँगी। किन्तु कैसे इस उमड़ती हुई आकांक्षा को दबाऊँ ? ___अवीक्षित -यदि मुझसे भय करती हो, तो समझो, मै तुम्हारा शत्रु नहीं हूँ। यदि पर पुरुष जानकर लज्जा करती हो, तो आड़ से ही अपना परिचय दो। कोई उत्तर नहीं देता, क्या सुन्दरी सचमुच कहीं चली गई ? वैशालिनी [ स्वगत ]-अब नहीं रहा जाता। [ पाड़ से ही उच्च स्वर से ] तुम किसे खोज रहे हो ?" । ____ 'राज-मुकुट' में स्वगत बहुत-कुछ कम हो गया है, तो भी एक-दो स्थलों पर वह अपने अस्वाभाविक और भद्द रूप में ही पाया है। रणजीत-मै जयसिंह को मंत्री पद देने के बिलकुल ही विरुद्ध हैं, क्योंकि उनकी संवेदना महाराना बनवीर के साथ अब कुछ भी नहीं । उन्हें यह प्रासन न दिया जाना चाहिए, वह स्वयं भी इसे न लेंगे। ___ शीतल सेनी-उनके न लेने पर अवश्य ही यह किसी दूसरे अधिकारी का हो। रणजीत [ स्वगत ]-वह अधिकारी श्रीमान् रणजीत हैं।" 'अंगूर की बेटी' में स्वगत की यह प्रवृत्ति प्रायः लुप्त हो गई है। पूरे नाटक में एक दो स्वगत हो हैं । 'अंत:पुर का छिद्र' में स्वगत के रोग का
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy