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________________ गोविन्दवल्लभ पन्त १०३ जायंगे, पात्रों और उनके चरित्रों में भी उतनी ही विभिन्नता मिलेगी। पंत जी ने भी अपने नाटकों के कथानक विभिन्न क्षेत्रों और कालों से लिये हैं । 'राज- मुकुट' और 'श्रन्त: पुर का छिद्र' ऐतिहासिक नाटक हैं, 'अंगूर की बेटी' और 'सिन्दूर - बिन्दी' सामाजिक और 'वरमाला' पौराणिक । इनके पौराfur और ऐतिहासिक नाटकों में पात्र भारतीय नाट्य शास्त्र की कसौटी पर कसकर परखे जाने उचित हैं और सामाजिक नाटकों के पात्र आधुनिक समीक्षा. शैली की कसौटी पर कसे जाने चाहिए । ७ 'वरमाला' के नायक-नायिका – अवीक्षित और वैशालिनी भारतीय दृष्टिकोण से एक विशेष वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं । इनके चरित्र से इसका साधारणीकरण हो जाता है । अवीक्षित धीरोदात्त नायक है । वह वीर योद्धा, सुन्दर, आखेदप्रिय, निर्भय, विजयी, सदाचारी एकनिष्ठ है । वैशालिनी को उड़ाकर ले जाना और विशाल शत्रु सेना से युद्ध करना उसकी वीरता और निर्भयता का प्रमाण है । वैशालिनी के अतिरिक्त किसी अन्य नारी की उसने कभी कामना ही न की । वैशालिनी भी एकनिष्ठ प्रेमिका है । सुन्दर शीलवती, पति-परायण, तपस्विनी, कष्ट-सहिष्णु, मुग्धमना और स्वप्न में भी वीक्षित की ही कामना करने वाली नारी है। दोनों ही चरित्रों में उतारचढ़ाव अधिक नहीं पाया जाता । चरित्र के विचित्र गुण, जो आधुनिक समीक्षा के आधारभूत मापदण्ड हैं, इनमें मिलने असम्भव हैं । भारतीय परिभाषा के अनुसार गुण - ही गुण इनमे मिलते हैं, हाँ, घृणा प्रेम में किस प्रकार बदल जाती है, यह दोनों में ही देखा जा सकता है । यही एकरूपता उदयन और पद्मावती के चरित्रों में मिलती है । उदयन धीर ललित नायक है । पद्मावती पतिव्रता धर्मपरायणा, सुन्दर, शीलवती श्रादर्श पत्नी है | उदयन के चरित्र में थोड़ा-सा सन्देह तनिक परिवर्तन ला देता है, वह भी बहुत अल्प समय के लिए। इन दोनों का ही चरित्र प्रदर्श है । भारतीय नायक-नायिका के परिभाषिक साँचे ढला हुआ । वीणावादन, ऐश्वर्य, विलास, प्रेम-यही इन दोनों के जीवन का आदर्श है । रन्त दोनों ही बुद्ध की शरण में शांति पाते हैं । इनके चरित्र में भी विशेष परिवर्तन या ग्रन्तद्वन्द्व नहीं है। हाँ, मागंधिनी अवश्य एक सबल ईर्ष्यालु चरित्र है उसका विकास बहुत ही अच्छा हुआ है । 'राजमुकुट' में पन्ना यद्यपि राजकुलोत्पन्न नहीं; फिर भी उसका चरित्र आदर्श की श्रेणी में ही आयगा । 'अंगूर की बेटी' की विन्दु और कामिनी आधुनिक जीवन के पात्र होते हुए भी श्रादर्श ही हैं— एकनिष्ठ पति-परायण । ।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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