SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १९३ ) बचने का उद्योग करे, वे महा मोहनी कर्म ये हैं यथा: ( १ ) त्रस्य जीवों को पानी में डुबो २ के मारे तो महा मोहनी कर्म बांधै० । में ( २ ) त्रस्य जीवों को अग्नि में जाल के धूम्र घोट के मारे तो म० । ( ३ ) त्रस्य जीवों को श्वास घोटके मारे तो न० ( ४ ) त्रस्य जीवों को माथे घाव गेर के मारे तो म० । (५) त्रस्य जीवों के माथे गीला चाम बांध के धूप मे मारे तो महा मोहनी कर्म बान्धे ॥ (६) गुंगे गहले को मार के हंसे तो म० . ( ७ ) | कर्म करके फिर छिपावे तो म० । ( ८ ) ( ९ ) अनाचार सेव के गोपन करे अर्थात् खोटा अपना अवगुण पराये माथे लगावे तो म० । राजा की सभा में झूठी साक्षी भरे तो म० । 1
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy