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________________ ( १९४ ) । (१०) राजा की जगात (महसूल) मारे अर्थात् राजा के धन आते को रोके तो म०। (११) ब्रह्मचारी नहीं ब्रह्मचारी कहावे तो म० । (१२) वाल ब्रह्मचारी नहीं बाल ब्रह्मचारी कहावे तो म०। (१३) शाह का धन लूटे शाह की स्त्री भोगे त. महा मोहनी कर्म बांधे ॥ (१४) पञ्चों का घात चितन करे तो म० । (१५) चाकर ठाकर को मारे प्रधान, राजा को मारे, स्त्री पुरुष को मारे, तो म०। (१६) एक देश के राजा की घात चिन्तन करे तो म० । (१७) पृथ्वीपति राजाका घात चिन्ते तो म०। (१८) साधु का घात चिन्ते तो म० । _ ( १९) सत्य धर्म में उद्यम करते को हटा देवे तो म०। (२०) चार तीर्थो के अर्थात् साधु के १ साध्वी के २ श्रावक के ३ श्राविका के अवगुण वाद वाले तो म०। ।
SR No.010192
Book TitleGyandipika arthat Jaindyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherMaherchand Lakshmandas
Publication Year1907
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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