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________________ २६ ज्ञान और कर्म । [ प्रथम भाग उसी प्रकारके अन्तर्गत हैं। जैसे - याद किये गये मित्रकी मूर्ति द्रव्य है, कल्पित चाँदी के पहाड़का शुक्लवर्ण गुण है, इत्यादि । अन्तर्जगत् में जिनका अनुभव होता है वे सुख-दुःख आदि, जिनकी प्रतिकृति बहिर्जगत् में नहीं है, उनकी भी गिनती द्रव्यमें होनी चाहिए । कमसे कम ' द्रव्य' शब्द इसी 1 अर्थ में लिया जाता है । चिन्तन- चेष्टा आदि अन्तर्जगत्की क्रियाओंका समावेश कर्मकी श्रेणी में होगा । आत्मा और बुद्धिकी गिनती द्रव्यमें की जाती है । इनके सिवा कुछ पदार्थ अथवा विषय ऐसे हैं जिनके बारेमें यह संशय हो सकता है कि वे बहिर्जगत्के हैं या अन्तर्जगत्के हैं, जैसे जाति | सब गऊ और घोड़े बहिर्जगत् में हैं। गोजाति या अश्वजाति बहिर्जगत् में हैं अथवा यह केवल ज्ञाताका अनुमान मात्र है, इस प्रश्नका उत्तर देते समय यद्यपि यह कहना पड़ेगा कि ' गो' ' अश्व ' शब्द बहिर्जगत् में हैं, क्योंकि ये शब्द बहिर्जगत्में लिखे और पंढ़े जाते हैं, किन्तु यह कहना सहज नहीं है कि. गोजाति और अश्वजाति, विशेष विशेष गऊ और घोड़ेको छोड़कर, पृथक्भावसे, ज्ञाताके ज्ञानके सिवा, अलग बहिर्जगत् में हैं । हरएक गऊमें गोजातिके सब लक्षण और हरएक अश्वमें अश्वजातिके सब लक्षण विद्यमान हैं, किन्तु गोजाति या अश्वजाति विशेष गऊ या विशेष अश्वसे अलग बहिर्जगत् में नहीं देखी जाती। इस तरहसे विचार करनेपर गोत्व और अश्वत्व बहिर्जगत् में हरएक गऊ और हरएक अश्वका गुण है और गोजाति या अश्वजाति अन्तर्जगत् में द्रव्यरूपसे गणनीय है । ऐसे ही देश और काल अगर ज्ञानके नियम हैं तो उनकी भी गिनती द्रव्यमें होनी चाहिए । अब यह बात कही जा सकती है कि बहिर्जगत् और अन्तर्जगत् के सभी, विषय उक्त पाँच प्रकारोंके अन्तर्गत हैं ।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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